झीणों मारग ग्यान रो, प्रेम भगति चित लाय।
पाप धुप्यां बस जावसी, एक ब्रह्म रे मांय॥
कांई कहेऊं प्रेम री, कहि ना जावे बात।
बाहर भीतर एक ज्यों, रामहि राम लखात॥
राम जिह्वा राम हिरदे, छाय गयो सब ओर।
एक राम रे कारणे, नैण बरस्या घनघोर॥
फूली माणस तन पायने, हिरदे बसाओ राम।
एको एक होय जावेला, ब्रह्मलोक मांहि जाय॥