राजस्थानी सबदकोस

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हड़बू रो राजस्थानी अर्थ

हड़बू

  • शब्दभेद : सं.पु.

शब्दार्थ

  • राजपूत कुलोप्तन्न एक सिद्ध पुरुष जिनकी कई लोग पूजा करते है। वि.वि.--'हड़बूजी' पंवार वंशीय सांखला शाखा के राजपूत थे इनके पिता का नाम मेहराज (मेहाजी) था। इन्होने राव जोधाजी का कष्ट के दिनों में सहयोग दिया। इनमें अतिथि सत्कार की असीम श्रद्धा थी। मंडोवर पर जब चित्तौड़ के महाराणा का अधिकार हो गया तब राव जोधाजी अपने 120 अनुगामियों सहित हड़बूजी के पास पहुँचे। दुभग्यि वश जोधाजी के पहुँचने तक सदाव्रत बँट चुका था। एकसक समय हड़बूजी को 'मुज्द' नामक एक लकड़ी, जो रंगाई के काम आती है, याद आई। इन्होने उस लकड़ी का एक टुकड़ा छीला और उसके बुरादे को आटे चीनी ओर मसालों के साथ पकाया इससे वह एक स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ बन गया। राव जोधजी, अपने साथियों सहित इस पदार्थ को खाकर सुख की नींद सो गये। वे मंडोर के दुख को कुछ काल तक भूल गये। प्रात: काल उठने पर प्रत्येक व्यक्ति ने देखा कि उनकी मूंछों पर सायंकालीन भोजन का रंग लगा हुआ है। इससे सभी व्यक्तियों को आश्चर्य हुआ। हड़बूजी ने इस घटना को जादूइक रूप दिया और जोधाजी को आशीर्वाद दिया कि इस पदार्थ के पेट में रहते तुम अपना घोड़ा जितनी दूर फेरोगे वहां तुम्हारा राज्य हो जाएगा। हड़बूजी की बात सही निकली और राव जोधाजी को राज्य वापस मिल गया। इसके बाद राव जोधाजी ने इनका सम्मान किया और फलोदी के पास 'बेंगटी' नाम गांव शासन में दिया। वहां पर आज भी हड़बूजी का प्रभाव लक्षित होता है। हड़बमजी ने सिद्ध पुरुष रामदेवजी तंवर की सत्संग की थीं इनकी योग्यता एवं श्रद्धा को देखकर रामदेवजी के गुरु योगी बालक--नाथजी ने इनको अपना शिष्य बना लिया। यहीं से ये हथियार त्याग साधु बन गये और भजन में लीन हो गये। ये एक वीर सिपाही एवं तपस्वी भक्त थे। इनका जीवन कठोर तपस्या से युक्त एवं पवित्र था। सिद्ध पुरुष रामदेवजी की समाधि के ठीक आठवें दिन इन्होंने भी, उन्ही के पास समाधि ले ली
  • भट्टी से कोयले निकालने व डालने का एक लोहे का उपकरण जिसके पीछे लकड़ी का डंडा लगा हुआ होता है