Anjas

सूर्यमल्ल मीसण

  • 1815-1868
  • Hadoti

बूंदी रा राजकवि। 'वीररसावतार' रे रूप में चावा। डिंगल में ओज सूं ओतप्रोत 'वीर सतसई' अर पिंगल में 'वंश भास्कर' जैड़े वृहद ग्रंथ रा रचनाकार। 'राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी' रो सिरै पुरस्कार इणां रे नांव माथै देइजै।

सूर्यमल्ल मीसण रौ परिचय

जन्म: 19 Oct 1815 | हरणा,भारत

निधन: 30 Jun 1868

सूर्यमल्ल मीसण राजस्थानी काव्य रै आधुनिक काल रा मूर्धन्य कवि है। आपरो जलम 19 अक्टूबर 1815 नै बूंदी रियासत रै हिरणा गांव में हुयो। आपरै पिता रो नांव चण्डीदान अर माता रो नांव भवानी बाई है। आप राष्ट्रीय विचारणा अर भारतीय संस्कृति रा पुरोधा लिखारा है, जिंणारी लेखनी सूं राजस्थानी काव्य में नवजागरण री सरूआत मानीजै। भणाई-गुणाई में आपरो जबरो सीर- संस्कार हुवण रै कारण आप संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, पिंगल अर डिंगल रो 
अध्ययन करयो। स्वामी स्वरूपदास सूं सूर्यमल्ल मीसण योग, वेदान्त, न्याय अर वैशेषिक री शिक्षा ग्रहण करी। गुरू आशानंद सूं आपराज व्याकरण, छंदशास्त्र, काव्य, ज्योतिस अर अश्ववैधक री धारणावां सीखी।

सूर्यमल्ल मीसण रो वीरतापरक काव्य 1857 रै पैलड़ै सुतंतरता संग्राम नै नवी धार दीन्ही। मीसण री विलक्षण कवित्वशक्ति अर सबड़क वीरतापरक प्रसंगा रै पाण आपरो वीर सतसई ग्रंथ राजस्थानी वीर काव्य परम्परा में ठावी जग्यां राखै। मीसण आपरै समै री सामंती परंपरा अर मूल्यां सूं साव अळगा बगावती तेवर अर मातृभूमि खातर प्राण होमण री प्रेरणा रै कारण जाणीजै।

सूर्यमल्ल मीसण री लिखोड़ी सात रचनावां मानीजै। फकत 10 बरस री छोटी उमर में आप ‘राजरंजाट' नांव रै खण्डकाव्य री रचना करी। 'वंश भास्कर' ग्रंथ सूर्यमल्ल मीसण री कीरत रो आधार मानीजै। वंश भास्कर पोथी में बूंदी रियासत है राजावां अर सामंतां री वंशावली अर ऐतिहासिक प्रसंग देखणनै मिळै। इण पोथी में चारण काव्य परंपरा की सबड़क ओळखाण लाधै। साहित्यिक दीठ सूं इण ग्रंथ री गिणती 19 वीं सईकड़े रै महाभारत रै रूप में मानीजै।
अधूरो हूंवतो थकां ई ओ ग्रंथ 3000 पृष्ठां रो ठाडो ग्रंथ है।, जिणमें बूंदी राज्य रै इतिहास रो वरणाव मिलै। श्री मीसण रो वीर सतसई ग्रंथ राजस्थान में स्वाधीनता खातर वीरता, ओज अर जोस री उदघोषणा करणवाळो जबरो ग्रंथ है। आ पोथी राजपूती शौर्य रा सांवठा चितराम अर काव्यशास्त्रीय दीठ सूं घणी महताउ मानीजै। जुद्ध बरणन में जैड़ी सजीवता वीर सतसई में देखणनै लाधै, दूजी ठौड़ दुर्लभ है। राष्ट्रीय प्रेरणा सूं लड़ालूम रचनाकार सूर्यमल्ल मीसण री बीजी पोथ्यां में 1 धातु रूपावली 2 बलवद विलास 3 छंदो मयूख अर 4 सती रासो ई आपरै सबड़क कथ्य अर सैली रै कारण गीरबेजोग मानीजै। उपर लिख्याड़ी सात पोथ्यां रै अलावा श्री मीसण मोकळा फुटकर छन्दां रो रचाव करियौ।
आपनै वीरता रै अणूंतै रचाव रै कारण वीर रसावतार री पदवी ई दीरिजै। सूर्यमल्ल मीसण बूंदी रै हाड़ा शासक महाराव रामसिंह रा दरबारी कवि हा। सन 1857 रै स्वाधीनता संघर्ष में तीव्रता अर वीरता पोखण में इण कवि री रचनावां महताउ अवदान गिणीजै। आपरै द्वारा लिख्योड़े ग्रंथ वंश भास्कर नै उणारै दत्तक पुत्र मुरारीदान पूरो करयो। वंश भास्कर री पैलीपोत टीका बारहठ कृष्णसिंह 'उदधि मंथिनी टीका' रै नांव सू लिखी। आदरजोग सूर्यमल्ल मीसण रै जीवनकाल में तीन ई ग्रंथां री रचना 1 वंश भास्कर 2 रामरंजाट अर बलवद विलास मानीजै। रामरंजाट लोक संस्कृति रो आईनो है तो बलवद विलास अर वंश भास्कर इतिहास अर लोक चेतना रो मेळ मानीजै। सूर्यमल्ल मीसण पर भारत सरकार रै डाक महकमै 2 रीपिया रो डाक टिकट जारी कर'र आपरी साहित्यिक सेवावां नै सनमान दियो है। मीसण री रचनावां रै मारफत स्वाधीनता आंदोलन अर राष्ट्रीय विचारणा नै मोकळी ऊरमा मिली। एड़े ओजस्वी रचना शिल्पी री मोकळी ओळयां बांच'र राजस्थान री नूंवी पीढ़ी आपरै आजादी रै संस्कारां नै हर्या करै। बानगी-

इला न देणी आपणी, हालरिया हुलराय।

पूत सिखावै पालणै, मरण बड़ाई मायं॥