चावा कवि। राजस्थानी री समकालीन कविता मांय आपरी ठावी जिग्यां।
गरीबी-रेखा
टाबरपणैं री खोज
दोगला
धोरां री धरती
पीड़
डरपै कांपै सावणी
बिरखा आई आंगणै