संत पीपाजी
जलम नाम प्रताप सिंह। खीची राजवंश सू सम्बंधित अर गागरौन रा शासक। रामानंद जी सूं दीक्षा लेयर राजस्थान मांय निर्गुण भक्ति परंपरा री शुरुआत करी। दरजी समुदाय रा आराध्य रे रूप में पूजीजे।
जलम नाम प्रताप सिंह। खीची राजवंश सू सम्बंधित अर गागरौन रा शासक। रामानंद जी सूं दीक्षा लेयर राजस्थान मांय निर्गुण भक्ति परंपरा री शुरुआत करी। दरजी समुदाय रा आराध्य रे रूप में पूजीजे।
खींची चौहान राजवंश में जलम्योड़ा संत पीपाजी रौ राजस्थानी भासा साहित्य अर भगति परंपरा ने हरियल करण में महताऊ योगदान है। राजस्थान रा संतकवि अर जगचावा समाज सुधारक संत पीपाजी रौ जीवन चरित आखै भारतबरस रै समाज सुधारकां खातिर अद्भुत अर अनुपम उदाहरण है।
संत कवि पीपाजी रौ जलम वि.सं.1390 रै लगैटगै झालावाड़ जिले रै गागरौन में होणो मान्यौ जावै। खींची चौहान राजवंश में जलम्यौड़ा पीपाजी बाळपण सूं लौगां नै आपरी तरफ खींचण वाळै व्यक्तित्व रा धणी हा। पीपाजी रै बचपन रौ नाम राजकुमार प्रतापसिंह हो। वै आपरै पिताजी रै परलोक सिधारण रै बाद राजगद्दी माथै आसीन होय'अर गागरौन रौ राजकाज संभाळियौ।
पीपाजी री जन्म-तिथि विषयक घणा मत-मतान्तर है। 'भक्तमाल' रा लेखक संत नाभादास पीपाजी नें स्वामी रामानंदजी रै 12 शिष्यां में सूं एक मान्या अर कबीर रै समकालीन बताया है। इतिहास पढण सूं इतरो तो सही साबित होवै है कै पीपाजी रौ शासनकाल वि.सं.1323-1348 रैयौ है।
पीपाजी बडा शूरवीर हा अर आपरै शासनकाल में आप कई लड़ाइयां लड़ी। इतिहासकार मुंहता नैणसी अर डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा पीपाजी रै जुद्ध-कौसल रौ सांतरौ बखाण करियौ है। टोडा अर गागरोन रा जुद्ध इणां रै शासनकाल में घणौ महत्व राखै।
जुद्ध रै मैदान में सैनिकां री क्षत-विक्षत लासां च्यारूं कानी बिखरियोड़ी पड़ी ही। गिरज, सियाल, चीलां इत्याद झुंड रा झुंड चूंट-चूंट'र खाय रैया हा। सगळौ जुद्ध छेत्र रगत सूं रंग्योड़ो हौ। जुद्ध अर मारकाट सूं उणां रे हिरदै में कंपकंपी छूटण लागी। एड़ो दरसाव देख'र पीपाजी रै मन में संसार री असारता रै प्रति वैराग रा बीज पनपण लागा। एकर वांरै हाथां एक गरभवती हिरणी रो शिकार हो गियो अर उण रा बिचियां ने बिलखता देख'र वांरै वैराग जाग गियो।
वां री वाणी रो एक दूहौ जग चावौ है-
पीपा पाप न कीजियै, अलगौ रहीजै आप।
करणी जासी आपरी, कुण बेटौ कुण बाप।।
जीभ रै स्वाद सारू जीव-हत्या करण वाळा रै खिलाफ संत पीपाजी रौ औ उद्गार कित्तौ सहज अर सरल है-
जीव मार जौहर करै, खातां करै बखाण।
पीपा परतख देखलै, थाली मांय मसाण।।
लोक मान्यता है कै पैला पीपाजी मूर्ति पूजक हा। देवी दुर्गा री उपासना किया करता। उणी बगत आखै भारत में वैष्णव भगति रौ बोलबालो हो। ऐक'र वां रै राज्य में वैष्णव भगत मण्डळी आई, जिण रा मुखिया पीपाजी नै परमात्मा रै आगे शुद्ध हृदय सूं आराधना करणै अर काशी जाय'र गुरु रामानन्द गुसाईं सूं मिळणै री सलाह दी। वां री सीख सुण'र पीपाजी कासी नगरी पूग'र स्वामी रामानंद रै दरसणां रौ लाभ उठायौ। स्वामी रामानंदजी पीपाजी नै दीक्षा रै जोग जाण'र आपरा शिष्य बणाया अर दीक्षा देय दी।
दीक्षा ग्रहण करियां पछै पीपाजी भगवद्भक्ति अर लोक कल्याण में लाग गिया। एक बगत अैड़ौ आयौ जद भगवद् साक्षात्कार भी हुयौ।
संत पीपाजी जन-कल्याण अर देस-सेवा मांय आपरै प्राणां रौ बलिदान करण वाळा क्षत्रियां रौ पतन देख'र मन में घणा दुखी हा। क्षत्रिय लूट-मार अर रगत-पात करण में लाग्योड़ा रैवता। जिणसूं साधारण लोग घणा पीड़ित हा। इण कारण संत पीपाजी वां नै सही मारग माथै चालण री प्रेरणा देय'र वां रौ उद्दार करियौ अर साधारण लोगां नै वां रै अत्याचारां सूं मुगती दिलाई। संत पीपाजी रेै उपदेशां सूं प्रभावित हुय'र क्षत्रिय वां नै आपरा साचा उद्धार करणिया अर सद् मारग दिखावणिया मान'र अर पीपाजी रै बतायोड़ै मारग माथै चालता थका आपरौ जीवण धिन्न करण री जुगत में लाग गिया। संत पीपा रै निरदेस सूं इज वै तरवार त्याग'र सुंई धारण करी अर एक सभ्य समाज रै दाई सिलाई रौ धंधौ अपणाय'र समाज में गौरवशाली अर आदर्श स्थान हासल कर लियौ। आज भी आखै भारत में संत पीपा रा अनुयायी घणी संख्या में जोवण नै मिळै, पण राजस्थान, मध्यप्रदेश (मालवा), गुजरात इत्याद प्रांतां में पीपा अनुयायियां री संख्या दूजै छेत्रां सूं बेसी है। वै खुद नै 'पीपापंथी' या 'पीपा क्षत्रिय दरजी' रै संबोधनां सूं संबोधित कर'र अपने आप नै गौरवान्वित महसूस करै। राजपूतां रा सगला ई गौत्र इंणा मांय पाया जावै।
संत पीपा री वाणी, साखियां, पदां इत्याद रूपां में मिळै। लगैटगै 153 साखियां, 45 पद, 2 चित्रावली लघु ग्रंथ, 1 ककहरा जोग ग्रंथ अर 1 पांच पद वालौ वर्ण विचार ग्रंथ है।
संत पीपा स्वामी रामानंदजी री गुरु परंपरा में आवण री वजै सू ईस्वर री निरगुण भगति परम्परा रै मारग माथै चालिया। उणां री वाणी में ब्रह्म रौ अलख, निर्विकार, निराकार अर निरगुण रूप साफ निजर आवै। गुरु, जीव, जगत, माया, नाम-सुमरण, इंद्रिय-निग्रह इत्याद रौ वरणन संत पीपा कबीर इत्याद संतां रै समान ई करियौ है। पण इणां री वाणी में दुराग्रह कम अर सत्याग्रह ज्यादा है हठवाद इणां में कठैई नीं पायौ जावै।
संत पीपाजी निरगुण ब्रह्म रै उपासक रै रूप में ही लोक अर समाज में जाण्यां जावै। इष्ट इणां रै रूं-रूं में समायोड़ौ रैयौ। ए कठैई-कठैई योग कानी प्रवृत्त हुवता ई दीखै। पण मुख्य रूप सूं तो वै एक सरल भगत हा। वै पूजा में, आचरणां में, देवां में, देवालयां में, तीरथां में, तीरथकरां आद में विश्वास नी करता। पीपाजी तौ सगलां रा दरसण आपरै घट में ई करै। इणनै ई वै साची पूजा, योग अर भगती मानता। वै खुद में अर इष्ट में कोई परदौ नीं स्वीकारै। वै तौ ब्रह्म मांय डूब जावणा चावै। आं री साधना-पद्धति में प्रेम है, विरह है जिका अंतस में पीव-मिलण री उत्कंठा, अभिलाषा अर विकलता पैदा करै अर वै सुमरण रै जरियै आपरै पीव रा दरसण कर लेवै। इण भांत पीपाजी रा व्यक्तित्व में सै'ज दाम्पत्य भाव री अनुभूति ई मिलै।
संत पीपा नी तो दर्शन रा पंडित हा अर ना ही योगसूत्र रा जाणकार। इंद्रिय-संयम अर आत्म-नियंत्रण सूं खुद नै खरौ कंचन बणावण रौ जतन वै जरूर करियौ है। इणी जतनां में वै योग-साधना भी करी हुवैला। वां री वाणी में त्रिकुटी, नाद, बिंदु, दशद्वारा घट, अंतर-नयन, अणहदनाद, सूर, चंद्र इत्याद यौगिक क्रियावां बाबत सबदावली रौ हुवणौ उणां रै योग-साधना में प्रवृत्त हुवण रौ गहरौ संकेत देवै। निरगुण रै प्रति वां री आस्था गाढी है। वै आपरी वाणी में जिण रूप न रंग अंग, न करण मरण अर जीव कैय'र आपरै ब्रह्मा रौ परिचै देवै। पण उणनै पावण सारू वै पीवमय हुय जावै। उणरै बीच में कोई परदौ नीं स्वीकारै-
'पीपा पिव सौं परदौ किसौ, सो तौ धणी हमार' कैय'र वै आपरौ दर्शन सै'ज समझावै। उणां री साधना रौ प्रमुख दरसण सै'ज भगती मारग है। आडंबर अर अहंकार इणां री साधना में कठैई नजर नीं आवै। पीपाजी कैवै कै -
अहंकारी पावै नहीं, कितनौइ धरै समाध।
पीपा सहज पहूंचसी, साहिब कै घर साध।।
धार्मिक रूढिवादिता अर सामाजिक कुरीतियां रै खिलाफ उत्तरी भारत में रामानंद, कबीर, रैदास इत्याद संतां आपरी शिक्षावां सूं जिकौ एक सुधारवादी आंदोलन सरु करियौ हौ, उणीं सूं प्रेरणा लेय'र राजस्थान में धन्ना अर पीपा धारमिक छेत्र में एक नयी विचारधारा नै जलम दियौ। संत पीपाजी आपरै आदरसां सूं समाज नै सुधारण री कोसिस करी अर खुद रै जीवण सूं अेक नवौ आदरस लोक अर समाज सांमी राखियौ। इणी वजै सूं इणां रा विचार सगलै ई वरगां रै लोगां नै प्रभावित कर सक्या। ऊंच-नीच रै भेद-भाव सूं परै सगला ही प्राणी ईश्वर री निजरां में समान है, संत पीपा री शिक्षावां आई कैवै।
संत पीपा रै मतावलंबियां रा धारमिक स्थान अणगिणत है, जिणां में सूं खास-खास इण भांत है-
गागरोन दुरग स्थित संत पीपा रौ मिंदर, पीपा री छत्री अर बाग, काली सिंध अर आहू नदियां रै संगम माथै गुफा-मिंदर, टोडा रायसिंह में राणी सीता सोलंकणी री समाधि, द्वारका कनै आरमाडा़ में पीपावट, अमरोली (गुजरात) में पीपावाव, काशी में पीपा कूप, समदड़ी (बाड़मेर) में पीपाजी रो मिंदर, जोधपुर में पीपाड़ गांव, जिणरौ नाम उठै एक पीपल हेठै पीपाजी रै साधना करणै री वजै सूं पड़ियौ।
इण भांत संत पीपाजी राजस्थान में एक आदरस थरपता थकां समाज कल्याण री जोत जगाई। जोकि सताब्दियां पछै आज भी समाज रौ मारग दरसण करै।