Anjas

सांईदीन दरवेश

  • Marwar

उत्तर मध्यकाल रा चावा संत कवि। सूफ़ी मत अर वेदांत सूं प्रभावित। काव्य में अफंड, आडंबर, धेख आद माथै प्रहार रै साथै सांप्रदायिक सद्भावना रौ सुभग संदेश।

सांईदीन दरवेश रौ परिचय

जन्म: मारवाड़,भारत

मध्यकालीन राजस्थानी काव्य में एक नाम आवै सांईदीन दरवेश रो। सांईदीन दरवेश रो जलम अठारवीं सदी रै आधैटे में हुयो। सांईदीनजी रै जनम विषय में फतेहसिंह जी मानव लिख्यौ कै पालनपुर रियासत रै गांम वारणवाड़ा में लोहार कुळ में सांईदीनजी रो जनम हुयो। सांईदीनजी बालगिरि रा चेला हा।

सूफी संप्रदाय अर वेदांत सूं पूरा प्रभावित हा। भलांई ऐ महात्मा हा पण पूरै ठाटबाट सूं रैवता।

अमूमन आबू माथै आपरो मन लागतो।  तत्कालीन घणै चारण कवियां माथै आपरी पूरी किरपा ही। आपरी सिद्धाई अर चमत्कारां री घणी बातां चावी है। जिणां मांय सूं एक आ बात ई चावी है कै ओपाजी आढा नै कवित्व शक्ति आपरी कृपादृष्टि सूं मिळी।

सांईदीनजी रै अर ओपाजी रै बिचाळै आदर अर स्नेह रो कोई पारावार नीं हो।

एकबार सांईदीनजी इकलिंगपुरी गया परा पण उठै ई ऐड़ै वीतरागी फकीर नै आबू री रूपाळी छिब अर कविश्रेष्ठ ओपाजी री याद आयां बिनां नीं रैयी। जणै ईज तो उणां कह्यो -

नयणै नींद न शरीर सुखतोनै देखां तद्द।

म्हांनै घड़ी नै बीसरैओपो ने अरबद्द॥

सांईदीनजी कविश्रेष्ठ नवलजी लाळस नै कविता रो ज्ञान करायो तो भक्तकवि आसाजी सांवळ (फैंदाणी) री कविता सूं ई आप गदगद हा।

ओपाजी आढानवलजी लाळसआसाजी सांवळ माथै तो दरवेश री पूरी मेहरबानी हुती ई साथै ई लाडूदानजी आशिया (ब्रह्मानंदजी )गोदाजी अर जीवणदासजी मेहडू जैड़ा सिरै चारण कवियां साथै ई सांईदीनजी री सतसंग हुवती रैती। जणै ई तो उणां बिनां किणी औपचारिकता रै कह्यो हो कै -

म्हारै अंतस नै प्रसन्न करण वाळी दो ई बातां है, जिणां में पैली आ कै म्हैं  चारणां  सूं  सतसंग कर'  राजी रैवूं अर दूजी आ कै मुगती सारू ईश्वर रो भजन करूं जिणसूं मुगत रो मारग मिळै-

दीन कहै दुनियाण मेंदेखी वसतु दोय।

राजी चारण सूं रहोमुगत नाम सूं होय॥

दरवेश लिखै कै राम नै विसार'  करड़ाण राखणिया जद जम री चोट नीचै आसी जणै उणांने ठाह लागसी।

सहज सरळ अर ठेठ काळजै पूगण वाळी सुघड़ शब्दावली रो प्रयोग करतां दरवेश जगदीश भजन नीं करणियां सारू लिखै कै जिणां मिनख देह धार जगदीश नीं जप्यो  तो पक्की अर नक्की मानलो कै उणां आपरी गत बिगाड़ी ई है सुधारी नीं।

हिंदू-मुसलमानऊंच-नीचभक्त-पतित आद रै झोड़ै माथै प्रहार करतां दरवेश लिख्यो कै लोग म्हनै ई कोई हिंदू मानै अर कोई मुसलमान। कोई किणी रै जोड़ कूंतै अर कोई किणी रै जोड़। वै भूल ज्यावै है कै ऐ सगळा मालक री रचना है। कोई किणी सूं बडो कै छोटो नीं है।

हिंदू अर मुसलमानां नै आपसी एकता रो सुभग संदेश देवता दरवेश लिख्यो कै दोनूं एक ई मूंग री दो फांड्यां हैपछै कुण मोटो अर कुण छोटो?

संसार में सुख- दुख विषयक ज्ञान करावतां दरवेश लिख्यो कै पांच तत्वां अर तीन गुणां सूं बण्यै शरीर धारी नै सुख-दुख रो जोड़ो शरीर साथै मिल्यो है।

ओ संसार कांई हैफखत एक सुपनो-

दीन तो देख विचार किया संसार तो रैन का सपना है।

शरीर री नश्वरता विषय दरवेश लिखै कै आ देह तो आखिर पड़ण री है-

दीन कहै इण देह को सोच हैसौ वरस रहै तो ही देह पड़ेगी।।

अतः उणरो ई जीवण अर मरण धिन है जिकै हरिभजन कियो। हरिभजन रै पाण उणनै अभयदान मिल्यो-

साधन नबी महमंद सीधामहा रस पीधा हुवा मसत्त।

सेवग कीधा आप सरीखादीधा ज्या़ं सिर सांई दसत्त॥

सांईदीन अफंडी संतां नै भिसटिया है जिकै भक्ति रै पाण नीं अपितु अफंड रै पाण महिमामंडित हुवणा चावै।

ऐड़ा संतां राम-राम तो करै नीं बल्कि दाम दाम करता रैवै-

सांईदीनजी टकशाली डिंगळ अर साधारण राजस्थानी दोनां में आपरी बात कैयी। आपरै काव्य में अफंडआडंबरधेख आद माथै प्रहार है तो साथै ई सांप्रदायिक सद्भावना रो सुभग संदेश ई गुंफित है।

दरवेशजी री रचनावां किणी ग्रंथ रै नाम सूं तो नीं मिळै पण फुटकर रूप सूं मोकळी उपलब्ध है। जिणां में दूहासोरठासवैयाछप्पयरेखताकुंडल़िया अर डिंगल गीत महताऊ है।