जन्म:
चोखांं का बास,भारत
परम्परागत कवियां में रामनाथ कविया रौ नांव मोकळै आदर साथै लियौ जावै। कविवर रामनाथजी रौ जलम चारणां री कविया साख में संवत् 1865 (1808 ई.) में सीकर रै गांव ‘चोखै को बास’ में ज्ञानजी कविया रै घर हुयौ। ‘करुण बावनी’ काव्य में कवि आपरौ जलम स्थान ‘गुमानपुर’ गांव बतायौ है। इणांरी सरुआती शिक्षा घराणै री परम्परा मुजब हुई। अेकर कवि रामनाथजी रै घर किणी त्यूंहार रै अवसर माथै परिवार रा सैंग सदस्य आनंद-मोद रै वातावरण में जीमै हा पण अचाणचक कवि री माता री आंख्यां में आंसू आय गिया। आपरी माता री आंख्यां में आंसूं देख’र कवि नै अणपार पीड़ होई। माता री आंख्यां में आंसूवां रौ कारण रामनाथजी रै छोटै भाई शिवनाथ रौ बिना बतायां घर छोडणौ हौ। कवि उणीज बगत प्रण कर्यौ कै वौ आपरै भाई नै ढूंढ’र माता साम्हीं हाजर करसी। प्रण मुजब रामनाथजी आपरै भाई री पड़ताळ सरू करी अर मौकळी ठौड़ गया।
आखिर वै घूमता-घूमता अलवर रियासत रै तिजारा पूग्या जठै महाराज बलवंतसिंह रै अठै वांरां भाई शिवनाथजी रैंवता। भाई सूं मिल’र कवि रामनाथजी नै घणौ हरख हुयौ। रामनाथजी री प्रतिभा सूं महाराज ई घणा प्रभावित हुया अर उणानै ई आपरै अठै राख लिया। रामनाथजी नै आपरै भाई साथै घर जावण री इजाजत नीं मिली जद रामनाथजी राजा नै सगळी बात समझाई तो वांनै फगत 6 दिन री छुट्टी मिळी। विदाई रै बगत महाराजा बलवंतसिंह कवि रामनाथ नै ‘लाखपसाव’ रै साथै 'सीहाळी' गांव ई भेंट कर्यौ।
इण पछै रामनाथजी आपरै भाई नै लेय’र पाछा आपरै गांव आया अर माता नै दियोड़ो वचन निभायो। राजा रौ दियोड़ौ तय बगत खतम हुयां पछै कवि रामनाथजी तिजारा पूग्या। अठै कुछ बगत बीत्यौ हो कै अलवर नरेस विनयसिंह किणी बात माथै महाराजा बलवंतसिंह सूं नाराज हुय’र वांनै धोखै सूं सपरिवार खत्म करवा दिया अर जागीर जब्त कर ली। इणरै साथै ई कवि रामनाथजी नै दियोड़ौ गांव 'सीहाळी' भी आपरै अधीन कर लियौ। कवि रामनाथ राजा विनयसिंह नै घणा ई समझाया कै जागीर जब्त हुयां पछै ई भेंट दियोड़ौ गांव पाछा नीं लिया जावै पण राजा आपरै फैसलै माथै अडिग रैयौ। खुद माथै इन्याव हुंवतौ देख’र कवि रामनाथजी ‘धरणै’ री तेवड़ी जिणमें 101 चारण आत्मबलिदान तांई नीं हटण रौ प्रण कर्यो। औ धरणौ ‘अलवर रै धरणै’ रै नांव सूं ख्यात हुयौ। अलवर नरेस नै वांरै बड़ै भाई हनुमंतसिंह अर शाहपुरा री महाराणी फेरूं समझाया पण राजा नीं मान्यौ। विरोधसरूप हनुमतंसिंह आपरै ठिकाणै रौ पट्टौ पाछौ देय’र अलवर छोड़ दियौ। शाहपुरै री महाराणी ई अनसन सरू कर दियौ। अलवर नरेस रा मंत्री अम्मूजान ई राजा नै खजानै री चाबी पाछी सूंप दीनी। पण राजा विनयसिंह आपरौ हठ नीं छोड्यौ। धरणै माथै बैठ्या चारणां संकट री वेळा करणी माता रौ आहृवान कर्यौ। कैयो जावै कै इणसूं अलवर रौ महल हालण लागग्यौ अर अलवर नरेस नै ई सद्बुधी आयगी। वो आपरौ हुकम वापस लियौ अर धरणौ उठावण सारू चारणां सूं अरज करी।
इण भांत सूं ‘अलवर रौ धरणौ’ सफल हुयौ अर रामनाथजी नै 'सीहाळी' सूं ई मोटो गांव 'सटावट' जागीर में दिरीज्यौ। कंई बरसां पछै महाराजा विनयसिंह रै देवलोक हुयां बाद अलवर री राजगद्दी माथै शिवदानसिंह विराज्या। उण बगत वै उमर नाबालिग हा। अंगरेज सरकार कांनी सूं कवि रामनाथजी महाराजा रा अभिभावक थरपीज्या। महाराजा शिवदानसिंह इस्लाम धरम कांनी झुकाव रै कारण पट्टेदार केस राखता पण आर्य संस्क्रति रा पक्का हिमायती रामनाथजी नै दर ई दाय नीं आंवता। समझायां पछै ई नीं मानणै पर रामनाथजी शिवदानसिंह रा पट्टदेार केस पकड़’र जबरण कटवा दिया। आ बात महाराजा रै बाळमन पर गै’रो असर करी अर उणां तय कर लियौ कै बगत आयां इणरौ बदळौ जरूर लेवणौ है। बालिग हुयां पछै राजकाज रौ अधिकार शिवदानसिंह नै हासल हुयौ अर उणां रामनाथ कविया सूं बदळौ ई लियौ।
कविया रौ गांव जब्त कर’र वांनै अलवर किलै में कैद कर दिया। इण अबखी हालत में ई कविवर हिम्मत राखी अर खुद’नै साहित्य सिरजण में रमाय लीनौ। कवि ईश्वर स्तुति में ध्यान राख्यौ अर वांरी करुणा सूं भरी पुकार रा भाव ई ‘करुण बावनी’ में द्रोपदी रै मुख सूं परगट हुया। कवि रामनाथजी दो ब्याव कर्या हा। उणारी पैली पत्नी सूं हुयोड़ै पुत्र रौ नांव परशुराम अर दूजी पत्नी सूं हुयै पुत्र रौ नांव गंगादास हौ। प्रसिद्ध भगत कवयित्री समानबाई रामनाथ कविया री ई सुपुत्री हा। कवि रा दोनूं बेटा शाहपुरा नरेस री सेवा में गया अर आपरी प्रतिभा सूं महाराजा नै घणा प्रभावित कर्या। महाराजा वांनै भेंट मांगणै रौ कैयो तो वां आपरै पिता नै कारावास सूं मुगत कराणै री अरज करी। इण पछै शाहपुरा नरेस आपरा जतन सरू कर्या। अलवर नरेस री माता रूपकंवर ई इण सारू पूरा प्रयास कर्या। सेवट सगळां रै दबाव पछै शिवदानसिंह रामनाथजी कविया नै कैद सूं मुगत करणै रौ हुकम दियौ अर वां नै जागीर रौ गांव 'सटावट' ई पाछो दियो। कवि रामनाथजी रौ छेकड़लौ बगत भगवान री भगती अर देवी री स्तुति में बीत्यौ। वै 'सटावट' री पहाड़ी माथै जाय’र देवी रा नित दरसण करता। लगैटगै 70 बरसां री उमर में रामनाथ कविया संवत् 1935 (1878 ई.) में देवलोक हुया। इण भांत रामनाथ कविया रौ आखौ जीवन संघर्ष में बीत्यौ पण वां आपरा सद्गुणां ज्यूं साच कैवणौ, साच रै मारग माथै अटल रैवणौ, खरी कैवणै सूं नीं चूकणौ आद रौ निभाव आखी उमर कर्यो अर राजस्थानी साहित्य री अंजसजोग चारणी परंपरा नै आपरी रचनावां सूं समर्थ करी।
कविवर रामनाथजी कविया री रचनावां इण भांत है-
1. करणीजी री स्तुति
2. पाबूजी रा सोरठा
3. द्रौपदी विनय (करुण बावनी)
4. फुटकर काव्य आद।
रामनाथ जी री रचनावां तो और भी हुवेला पण वै प्रकास में कोनी आय पाई।