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मनोहर शर्मा

मनोहर शर्मा

  • jaipur

ख्यात साहित्यकार। संपादक रूप ठावी ओळखाण। 'रोहिड़े रा फूल' चावी पोथी।

मनोहर शर्मा रौ परिचय

जन्म: बिसाऊ,भारत

राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति री सेवा में मौन साधक, निरभिमानी व्यक्तित्व रा धणी डॉ. मनोहर शर्मा रो जनम आसोज बदी दूज, सं. 1972 (सन् 1915) नै राजस्थान रै शेखावाटी अंचळ रै बिसाऊ (झुंझुनूं) गांव में हुयो। आपरै पिताजी रो नांव पं. जगन्नाथजी शर्मा अर मां रो नांव धन्यदेवी हो।

डॉ. शर्मा रो बाळपणो घणकरो कोलकाता मांय बीत्यो अर सरुपोत री भणाई-लिखाई महाजनी में हुई। इणरै पछै देवनागरी लिपि अर हिंदी भासा रो ज्ञान लियो। कोलकाता सूं पाछा आपरै गांव बिसाऊ आय'र बठै री मिडिल स्कूल में आठवीं तांई री भणाई करी।

इणरै पछै दसवीं सूं लेय’र ओम.ओ. तांई री सैंग परीक्षावां मास्टर बण'र स्वयंपाठी छात्र रै रूप में पास करी। पछै रूइया कॉलेज, रामगढ़ में प्रोफेसर रैया अर बाद में श्री शार्दूल संस्कृत विद्यापीठ, बीकानेर में हिंदी प्रवक्ता रै आसण सूं 1972 में अवकास लियो।

डॉ. मनोहर शर्मा राजस्थानी साहित्य रै लूंठे महारथियां मांय सूं अेक हा। राजस्थानी काव्य में जितरा भांत-भांत रा प्रयोग इणां कर्या है, उतरा सायद ई कोई दूजो साहित्यकार कर्या होसी। छोटी-सी उमर में ईज इणां री रुचि काव्य-रचना में होयगी ही। 'अरावली री आत्मा' अर 'गीत कथा'  नांव री दो पोथ्यां घणी पैलां छपी ही। ‘धोरां रो संगीत’, ‘कूंजा', 'अमरफळ' 'गोपी गीत', 'बटाऊ', 'गांधी गाथा', ‘मनवार', ‘जय जननायक', 'फूल-पांखड़ी', 'पंछी', 'मरवण', 'रसधारा', 'बापू', 'गजमोती', 'बेल बधै', 'बटाऊ', 'म्हारो गांव', 'अबला', 'ताराझड़ी' अर' आरजधारा' आद काव्यां री रचना आप करी है। डॉ. मनोहर शर्मा दूजी भासावां री मोकळी चावी पोथ्यां रो राजस्थानी भासा में अनुवाद कर्यो है जिणां में महाकवि कालिदास री रची 'मेघदूत' खास है।

चावा फारसी कवि उमर खैयाम री 'रूबाइयां' रो राजस्थानी में अनुवाद, पालि भासा में रची 'धम्मपद', प्राकृत में रची 'महावीर वाणी', 'श्रीमद्भगवद्गीता'
अर रवीन्द्रनाथ ठाकुर री बंगला कवितावां रै राजस्थानी मांय अनुवाद रै सागै-सागै कवितावां रो ई अनुवाद कर्यो।

इणां नैं राजस्थान रै लोक-साहित्य रो मोकळो ज्ञान हो। लोककथावां अर लोकगीतां पर इणां रो गैरो अध्ययन कर्योड़ो हो। 'वरदा' नांव री तिमाही अनुसंधान पत्रिका रै संपादक-रूप में सैंग राजस्थानी-प्रेमी डॉ. शर्मा नैं ओळखै। डॉ. मनोहर शर्मा राजस्थानी भासा रे खातर आपरो सैंग जीवण न्यौछावर कर दियो। काव्य रै सागै-सागै आप गद्य भी मोकळो लिख्यो है। 'कुंवरसी सांखलो', 'सोनल भींग', 'कन्यादान', 'रोहिड़ै रा फूल' 'राजस्थानी बाल-साहित्य', 'नैणसी रो साको', ‘बालबाड़ी', ‘धरती रो धणी', 'हंसमुखलाल', 'देस-दिसावर' आद रै सागै मोकळी पोथ्यां रो संपादन कर्यो है जिणां में 'राजस्थानी वात संग्रै', 'बातां रो झूमखो', 'राहब साहब', ‘मूमल' आद है।

हिंदी में 'कवि का गांव', संस्कृत में 'पत्रं पुष्पम्' पोथी री भी रचना करी ही अर 'वरदा' पत्रिका रो संपादन कर राजस्थानी रै प्राचीन अर लोक-साहित्य नैं जनमानस रै साम्हीं लावण रो सरावणजोग काम कर्यो।

डॉ. मनोहर शर्मा इण साहित्य-सेवा रै पाण मोकळै मान-सनमानां अर पदां सूं आदरीज्या। डॉ. शर्मा री रची पोथी 'सोनल भींग' राजस्थानी प्रचारिणी सभा, कोलकाता सूं सन् 1972 में पुरस्कृत हुयी। इणी भांत 1976 में मारवाड़ी सम्मेलन, मुंबई अर 1977 में राजस्थानी भाषा-साहित्य संगम, बीकानेर आपनैं पुरस्कृत कर्या।

'धोरां रो संगीत' काव्य संकलन नैं मारवाड़ी सम्मेलन, मुंबई रो 'वागेश्वरी' पुरस्कार सन् 1980 में मिल्यो। बालकथावां रै संग्रै 'बालबाड़ी' पर अंतरराष्ट्रीय बाल वर्ष में राजस्थानी भाषा-साहित्य संगम, बीकानेर सूं 1980 में पुरस्कार मिल्यो। महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन, उदयपुर सूं 'महाराणा कुंभा पुरस्कार' सूं सम्मानित हुया। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर सूं पैलै 'साहित्य मनीषी' सनमान सूं सम्मानित हुया।

राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर सूं विशिष्ट साहित्यकार रै रूप में 1968 में सम्मानित, श्री संगीत भारती, बीकानेर सूं लोककला अर लोक-साहित्य री सेवा खातर 'कलाश्री' उपाधि सूं अलंकृत अर राजस्थानी रत्नाकर दिल्ली सूं 1976 में, श्री तरुण साहित्य परिषद्, बिसाऊ सूं 1978 में सनमान हुयो।


राजस्थानी साहित्य अर लोकसंस्कृति रा विद्वान अर लोकमिजाज रा गैरा पारखी डॉ. मनोहर शर्मा कोरा-मोरा भावप्रवण कवि ईज नीं हा, लोकजीवण अर लोकसाहित्य में रचिया-बसिया मिनख हा।

अनूठी भाव-भंगिमा, वरणन री खासियत, सबदां रो बांकपण, संवादां रा मीठा प्रयोग अर सबदां री बारीक कारीगरी आंरै कथा-काव्य री विसेसतावां है। जलमभोरो मान, देस अर देसवासियां सारू कोड, समाज नैं ऊंचो उठावण सारू बलिदान, समाजसेवा री ललक, स्वारथ रो त्याग, रूढियां रो विरोध आद आं कवितावां रा विषय रैया है।

डॉ. शर्मा आपरै सिरजण में भासा, व्यंजना, रूपबोध, सैली, कहावतां अर अलंकारां नैं मोत्यां ज्यूं गूंथ्या है। डॉ. शर्मा रै काव्य री विसेसता आ है कै बै वातावरण नैं जीवंत रूप सूं उतारै। आधुनिक राजस्थानी साहित्य में डॉ. शर्मा सै सूं बेसी काव्य-रचना करी है, जिकी राजस्थानी प्रेमी जुग-जुग याद राखसी।