
कृपाराम खिड़िया
आगली पांत रा डिंगल कवियों में खास गिणावणजोग नांव। 'राजिया रा सोरठा' शीर्षक सूं घण चावै नीतिपरक संबोधन काव्य रा सिरजणहार।
आगली पांत रा डिंगल कवियों में खास गिणावणजोग नांव। 'राजिया रा सोरठा' शीर्षक सूं घण चावै नीतिपरक संबोधन काव्य रा सिरजणहार।
आछा है उमराव
आछा जुध अणपार
आछो मांन अभाव
आछोड़ा ढिग आय
आहव नै आचार
आवै नही इलोळ
अदतारां घर आय
अहळा जाय उपाय
अहळा जाय उपाय
अरबां खरबां आथ
अरहट कूप तमांम
असली री औलाद
औगुणगारा और
औरुं अकल उपाय
औसर पाय अनेक
अवसर मांय अकाज
बांकापणौ बिसाळ
बचन नृपति-अविवेक
बंध बंध्या छुडवाय
भाड़ जोख झक भेक
भली बुरी री भीत
भावै नहींज भात
भिडियौ धर भाराथ
बिन मतलब बिन भेद
चालै जठै चलंत
चावळ जितरी चोट
चोर चुगल वाचाळ
चुगली ही सूं चून
दांम न होय उदास
देखै नही कदास
धांन नही ज्यां धूळ
दुष्ट सहज समुदाय
दुष्ट सहज समुदाय
एक जतन सत एह
ऐस अमल आराम
गह भरियो गजराज
घण-घण साबळ घाय
घेर सबल गजराज
गुण अवगुण जिण गांव
गुण सूं तजै न गांस
गुण सूं तजै न गांस
गुणी सपत सुर गाय
हीमत कीमत होय
हित चित प्रीत हगांम
हियै मूढ़ जो होय
हुनर करो हजार
हुवै न बूझणहार
हुवै न बूझणहार
ईणही सूं अवदात
जग में दीठौ जोय
जगत करै जिमणार
जका जठी किम जाय
जणही सूं जडियौह
जिण बिन रयौ न जाय
जिण मारग औ जात
जिण तिण रौ मुख जोय
जिणरौ अन जल खाय
कहणी जाय निकांम
कही न माने काय
कनवज दिली सकाज
कांम न आवै कोय
करै न लोप
कारज सरै न कोय
कारण कटक न कीध
के जहुरी कविराज
कीधोड़ा उपकार
केई नर बेकार
खाग तणै बळ खाय
खग झड़ वाज्यां खेत
खळ धूंकळ कर खाय
खळ गुळ अण खूंताय
खीच मुफ़्त रो खाय
खूंद गधेडा खाय
खूंद गधेडा खाय
कीधोडा उपकार
कूड़ा कुड़ परकास
कूडा निजल कपूत
कुटळ निपट नाकार
कुट्ळ निपट नाकार
क्यों न भजै करतार
लछमी कर हरि लार
लह पूजा गुण लार
लावां तीतर लार
लो घड़ता ज लुहार
मद विद्या धन मान
मलियागिर मंझार
मन सूं झगडै मौर
मानै कर निज मीच
मणिधर विष अणमाव
मांनै कर निज मीच
मतलब री मनवार
मिले सिंह वन मांह
मूसा नै मंजार
मुख ऊपर मिठियास
मुख ऊपर मिठियास
मूरख टोळ तमांम
नारी दास अनाथ
नभचर विहंग निरास
नैन्हा मिनख नजीक
नहचै रहौ निसंक
नां नारी नां नाह
नरां नखत परवाण
नारी नहीं निघात
पाल तणौ परचार
पाटा पीड उपाव
पढ़बो वेद पुरांण
पहली हुवै न पाव
पहली कियां उपाव
पल-पल में कर प्यार
पटियाळौ लाहोर
पय मीठा पाक
पिंड लछण पहचाण
प्रभुता मेरु प्रमांण
राव रंक धन रोर
रिगल तणौ दिन रात
रोटी चरखो राम
सार तथा अण सार
सब देखै संसार
सबळा संपट पाट
समझणहार सुजांण
समझणहार सुजांण
समझहीन सरदार
सांम धरम धर साच
सत राख्यौ साबूत
सत्रू सूं दिल स्याप
सो मूरख संसार
सुधहीणा सिरदार
सुख में प्रीत सवाय
सुख मे प्रीत सवाय
सुण प्रस्ताव सुभाय
स्याळां संगति पाय
तज मन सारी घात
तुरत बिगाड़े तांह
उद्दम करौ अनेक
उण ही ठांम अजोग
ऊँचे गिरवर आग
उपजावे अनुराग
वसुधा बळ ब्योपाय
विष कषाय अन खाय
गेला गिंडक गुलाम