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कन्हैयालाल सेठिया

कन्हैयालाल सेठिया

  • 1919-2008
  • bikaner

आधुनिक राजस्थानी साहित्य मांय पै’ली पांत रा सिरैनांव कवि। 'महाकवि' रै रूप में ई पिछाण।

कन्हैयालाल सेठिया रौ परिचय

जन्म: 11 Sep 1919 | सुजानगढ़,भारत

निधन: 11 Nov 2008

कन्हैयालाल सेठिया आधुनिक राजस्थानी कविता में आपरी अेक न्यारी-निकेवळी पिछाण राखै। अेक संत अर दार्शनिक रो गैरो चिंतन, सबदां री बारीक कारीगरी, मीठी रसभरी अभिव्यक्ति अर कम सूं कम सबदां में मोकळी कैवण री खिमता रै पाण ही सेठियाजी राजस्थानी भासा रा सिरमौर कवि मानीजै। वांरौ जनम 11 सितंबर, 1919 नै चुरू जिलै रे सूजानगढ़ कस्बै में अेक धनी महाजन सेठिया परिवार में हुयो। वांरी सरूपोत री भणाई सुजानगढ़ में हुयी अर बी.कॉम. कोलकाता सूं पास करी। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेवण रै कारण भणाई में कीं ठैराव आयो पण आजादी पछै भणाई पूरी करी। लारलै पांच-छह दसकां सूं राजस्थानी कविता नैं देस-विदेस में ख्याति दिरावण वाळा सेठियाजी दस बरसां री काची उमर में ही कविता करण री खिमता राखता थकां भावुक हिरदै अर प्रखर बुद्धि री बातां कैवण लागा। वांरी राजस्थानी भासा में लगैटगै दो दर्जन पोथ्यां छप चुकी है अर इतरी ई पोथ्यां हिंदी में छपी है। वांरी लोकचावी कविता ‘धरती धोरां री’ अर ‘अरे घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो’  (पातळ अर पीथळ) तो आज करोड़ां कंठां रो हार है। ‘रमणियां रा सोरठा’, ‘मींझर’, ‘गळगचिया’ (गद्य गीत), ‘कूंकूं’, ‘लीलटांस’, ‘मायड़ रो हेलो’, ‘गीतां री दीठ’, ‘सबद’, ‘अघोरी-काळ’, ‘धर कूचां धर मजलां’, ‘सतवाणी’, ‘नीमड़ो’, ‘कक्को कोड रो’, ‘लीकलकोळया’ आद वांरी प्रमुख पोथियाँ है। इणी भांत हिंदी में आपरी ‘बनफूल’, ‘अग्निवीणा’, ‘दीपकिरण’, ‘मेरा युग’, ‘प्रतिबिंब’, ‘मर्म’, ‘अनाम’ आद पोथियाँ छप चुकी है। इणां मांय सूं ‘ताजमहल’ रो उर्दू में, ‘प्रतिबिंब’ रो आंग्ल भासा में, ‘निर्ग्रंथ’ रो बांग्ला अर ‘खुली खिड़कियां चौड़े रास्ते’ रौ मराठी भासा मांय अनुवाद हुयो है। सेठियाजी मंत्र-सिद्ध कवि रै रूप में ओळखीजै। वांरी री रचनावां में दार्सनिकता री पुट मिली रैवै। हरेक चीज, बात अर व्यापार नैं देखण रौ आपरो तरीको घणो गूढ है जिकै सूं आपरै काव्य मांय संवेदना अर अपणायत री मुकळायत मिलै। यूं लखावै कै सेठियाजी री रचनावां लगोलग, गूढ सूं गूढतर हुवती जा रैयी है। आज रै राजस्थानी काव्य नैं भावनावां री इत्ती ऊंची धरती पर पूगावण वाळा कवियां में सेठियाजी रौ आसण घणो ऊंचो है। 

वांनै राजस्थानी साहित्य जगत में लगैटगै सगळा प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुक्या है। सन् 1976 में काव्य पोथी ‘लीलटांस’ नै केंद्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली रौ पुरस्कार अर सन् 1987 में 'सबद' नैं राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर रौ ‘सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार’ मिल्यो। 1981 में लोक-संस्कृति शोध संस्थान, चूरू रो डॉ. टैस्सीटोरी स्मृति स्वर्ण पदक’, 1984 में राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर सूं ‘साहित्य मनीषी’ री उपाधि, 1984 में ईज महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन रौ ‘महाराणा कुंभा पुरस्कार’ 1988 में वांरी हिंदी रचना ‘निर्ग्रंथ’ नैं भारतीय ज्ञानपीठ रौ ‘मूर्तिदेवी साहित्य’ पुरस्कार’ मिल्यो। राजस्थान री संस्कृति रै संवाहक आपरै गीत ‘धरती धोरां री’ पर बण्योड़ी डाक्यूमेंट्री नैं भारत सरकार रौ सर्वोच्च सम्मान ‘स्वर्ण कमल’ प्राप्त हुयो है। इण भांत वांरौ काव्य सिरजण घणो विस्तृत है। जीवनमूल्यां रौ जिको विघटण रास्ट्र अर समाज में आज हुय रैयो है, उणरी गैरी चिंता सेठियाजी रै अेक सर्जक-चिंतक-कविरूप में मिलै। इण भांत बै समाज री पीड़ा सूं जुड़्योड़ा कवि है। राजस्थान री सुरंगी संस्कृति रो दरसाव भी  वांरी कविता में देखण नै मिलै। छंदमुक्त कविता रौ सफळ अर सटीक प्रयोग कर राजस्थानी भासा री अणहद खिमता रौ परिचै भी वां दियौ। वां काव्य-शिल्प रा भी नूंवा-नूंवा प्रयोग करिया अर काव्य री भासा सरल, सुबोध अर प्रसाद गुण सूं पूरण हुवण रै सागै ई चित्रत्मकता अर संप्रेषणीयता सूं भरी। लोकजीवण री सबदावळी इणां रै काव्य री व्यंजणा नैं प्रभावी बणावै। राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर आपरी पत्रिका ‘मधुमती’ रौ अेक विषेषांक सेठियाजी पर प्रकासित कियो है।