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हरीश भादानी

हरीश भादानी

  • 1933-2009
  • bikaner

सही मायनै में जनकवि रै रूप में पिछाण। राजस्थानी-हिंदी रा चावा-ठावा कवि-गीतकार। रेत रै कण-कण रा पारखी। जनवादी लेखक संघठन सूं जुड़ाव।

हरीश भादानी रौ परिचय

जन्म: 11 Jun 1933 | बीकानेर,भारत

निधन: 02 Oct 2009

जनकवि हरीश भदानी रौ जलम 11 जून 1933 नै बीकानेर रै अेक मझलै परिवार मांय हुयौ। वांरा गीत अर कवितावां ही वांरै जनकवि होवण री सांची पिछाण री पुस्टी करै। वांरै गीतां रौ मजूर-किरसां री आम सभावां अर परभात फैरियां में ठावो असर रह्यौ। वां समै मुजब जन-आन्दोलनां मांय भागीदारी निभाई अर जेळ री यातनावां ई भोगी। हरीश भादानी मार्क्सवादी विचारधारा सूं जुड़ियोड़ा हा अर वांरौ औ विचार वांरी रचनावां में साव जथारथ औस्था में परगट हुवै। 'बाथां में भूगोळ', 'जिण हाथां आ रेत रचीजै', 'काचर रो बीज', 'हूणियै रा सोरठा' सरीखी कित्ती ई नांमी पोथ्यां रै माध्यम सूं साहित्य मांय वां आपरी अेक न्यारी साख बणाई। हरीश भादानी बरसां तांई बंबोई, कळकत्ता अर जैपर-बीकानेर मांय अखबारां, पत्र-पत्रिकावां अर गैर-सरकारी संस्थानां मांय कलम री मजूरी रा अलेखूं काम किया, वां प्रौढ़ शिक्षा अर साक्षरता मिशन रै पेटै अनौपचारिक शिक्षा माथै दो दरजन किताबां लिख नै सूंपी। 'वातायन' सरीखी साहित्यिक पत्रिका रै जरिये वां प्रदेश मांय नवा रचनाकारां सारू एक साहित्यिक मंच त्यार करण रौ अनूठौ काम कियौ। वांरै काव्य सिरजण मांय रेगिस्तानी जीवण री अबखायां, खासकर पाणी रै टोटै अर दोजखी में पळती जीवारी नै उणी लै’जै अर मुहावरै में सिरजण री कोसीस, वांरी कवितावां नै लोक-संवेदणा सूं सराबोर कर देवै। वै जनवादी लेखक संघ री राजस्थान इकाई रा संस्थापक सदस्य ई रह्या। हरीश भादाणी  2 अक्टूबर 2009 नै सौ बरस पार करग्या।