राजस्थानी गीत-काव्य परम्परा मांय बड़ रूंख सरीखी छवि।
अड़वो
आंधळी
धरती अब पसवाड़ौ फेरै
रोहीड़ा अर खेजड़ा
सोवन थाळ
हूक