बांकीदास आशिया
मध्यकाल रा सिरै डिंगल कवि अर राष्ट्रीय चेतना परक गीत लिखण वाळा पैला कवि। वीर, शृंगार, नीति, भक्ति आद सगळी धारावां में समान रूप सूं सृजन करियो।
मध्यकाल रा सिरै डिंगल कवि अर राष्ट्रीय चेतना परक गीत लिखण वाळा पैला कवि। वीर, शृंगार, नीति, भक्ति आद सगळी धारावां में समान रूप सूं सृजन करियो।
जन्म: भांडियावास,भारत
राजस्थानी रा मूर्धन्य कवि बांकीदास आशिया रो जलम भांडियावास रा चारण 'फतैसिंह आशिया' रै घरे वि.सं. 1828 में हुयौ। आपरी मातुश्री रो नाम 'हिन्दूबाई' हो, जो कि डिंगळ रा चावा कवि 'ऊकजी बोगसा', सरवड़ी री बेटी हा। इण ही ऊकजी बोगसा रा सानिध्य में बांकीदासजी बाळपण में काव्य-अभ्यास कियौ।
बांकीदास जी री स्मरण शक्ति इतरी विलक्षण ही कै कोई पण डिंगळ या दूजी काव्य रचना एकर सुणियां याद रैय जावती। इण कारण आपनेे सैंकड़ूं पिंगळ-डिंगळ री रचनावां कंठस्थ ही।
अद्भुत काव्य प्रतिभा रा धणी बांकीदास जी रायपुर ठाकुर अर्जुनसिंह ऊदावत री गुण ग्राहकता, काव्य प्रियता अर उदारता री बात सुण उठै जावणो तय कियो। विद्या प्रेमी ठाकुर सूं सामनो होवतां ई बांकीदास जी ओ दूहो सुणायो-
रवि रथ चक्र गणेस रद, नाक अलंकृत नार।
यूं हिज इण इळ पर अजो, दिपै सूर दातार।।
इण बात सूं ठाकुर साहब अणूतां राजी होया अर आपरी हवेली में बांकीदास रे पठन-पाठन री पूरी व्यवस्था करवाई। रायपुर हवेली में लगै-टगै पांच बरस तांई बांकीदास जी विविध विषयां रा भिन्न-भिन्न गुरुवां रे सानिध्य में काव्य सिध्दि हासिल करी। संस्कृत पंडतां सूं मम्मट रो काव्य प्रकास पढ्यो। वैयाकरणां सूं चन्द्रिका अर सारस्वत रो अध्ययन करियो। बांकीदास जी लिखै-
बंक इतियक गुरु किये, जितयक सिर पर केस।
बांकीदासजी नै जितरी पद्य में निपुणता प्राप्त ही उतरी ई प्रवीणता गद्य लेखन में भी ही।इण दिशा में बांकीदासजी री ख्यात राजस्थानी साहित्य री हेमाणी मानी जावै। ऐड़ा प्रतिभा संपन्न कवि ने जोधपुर महाराजा मानसिंह जी आपरा कविराजा बणाया।
बांकीदास जी डिंगल रा सिरै कवियां में शुमार किया जावै। जिणां आपरी काव्य प्रतिभा री ओळखाण तत्कालीन राज-समाज में डंके री चोट थापित करी। उणां री घणकरीक रचनावां दूहा में रचित है। बांकीदास जी रा दूहा घड़त अर जड़त सूं इतरा सतोला है कै लोगां री जबान माथै सहजता सूं चढ जावै। जीवण जगत सूं संबंधित बाह्य अर आंतरिक शायद ही कोई ऐड़ो छेतर लारै रैयो होवै जिण माथै बांकीदास जी री लेखणी नी चाली होवै।
आपरी चावी कृतियां में सूर छतीसी, कवि मत मंडण, सींह-छतीसी, वीर विनोद, धवळ पचीसी, दातार बावनी, नीति मंजरी, सुपह छतीसी, वैसक वार्ता, मावड़िया मिजाज, मोह मर्दन, चुगल मुख चपेटिका, वैस-वार्ता, कुकवि बतीसी, विदर बतीसी, भुरजाळ भूषण, गंगा-लहरी, जेहल जस जड़ाव, सिधराव छतीसी, कायर बावनी, झमाल राधिका सिख-नख वर्णन, सुजस छतीसी, संतोष बावनी, विवेक पच्चीसी, कृपण पच्चीसी, कृपण दर्पण, हमरोट छतीसी आद है।
इण रचनावां में शूरवीरां री निर्भीकता, स्वामिभक्ति, शौर्य, आध्यात्मिकता, नीति, न्याय, ऐतिहासिकता, भोग विलास माथै चोट, आत्मबोध, कायरता माथै चोट, दोगले आचरण री पोल, शोषण रे प्रति रोस आद विषयां रो समावेश करका थकां कविराजा आपरी लेखणी चलाई है।
इण रचनावां रे टाळ कविराज जी री कई रचनावां अजै अणछपी पड़ी है। जिणां में चंद्रदूषण-दर्पण, महाराजा रा कवित, मानजसो मंडण, ठाकुर रूपसिंघजी री झमाल, आयस देवनाथजी रा दूहा, डिंगल गीत, ख्यात, पद आद है।
कविराजा बांकीदास जी राष्ट्रीय चेतना अर चिंतन रा प्रखर कवि हा। पूरे भारतीय कवि समाज में अंग्रेजी सत्ता रे खिलाफ सबसूं पैला काव्य घोष करणियां में बांकीदास जी रो एकमेव नाम है। आपरी कवितावां तत्कालीन समाज री विडरूपतावां माथै खुली चोट है। इणां में नशा, हिंसा, विलासिता, शोषण, धूर्तता आद मानवीय विकृतियां माथै प्रहार हुयौ है।
आपरी कवितावां उण समै जितरी प्रासंगिक ही उतरी इज आज भी प्रासंगिक है। कवि अंध विश्वास, अंध श्रध्दा, अफंड अर पाखण्ड ने खंड खंड करण में कोई कमी कोनी राखी। कवि तत्कालीन शासक वर्ग में आयोड़ा विकारां माथै भी कठोर चोट करी है। कविराजा रो शुध्दाचरण माथै जोर हो, उणां आम अर खास ने ओ इज कैयो कै मनसा, वाचा, कर्मणा सही राह माथै बैवणो चाहिजै।
बांकीदास जी रो ओ गीत तो राजस्थानी भाषा रो गौरव गीत मानीजै जिणमें कविराज जी साम्प्रदायिकता सूं ऊपर उठ'र गोरी सत्ता सूं भिड़ण रो भारतीयां ने आव्हान कियो-
महि जातां चींचाता महलां, ए दुई मरण तणां अवसाण।
राखो रै किंहिक रजपूती, मरद हिंदू की मुसलमान।।
संवत 1890, सावण सूदी 3 ने कविराजा बांकीदास जी नश्वर काया ने छोड़'र सुरग में दिव्य देह धारण करी। मातमपुर्सी खातर महाराजा मानसिंह जी कविराजा रे निवास माथै पधारिया अर बांकीदास जी री याद में ए मरसिया कैया-
सद् विद्या बहु साज, बांकी थी बांका वसु।
कर सुधि कवराज, आज कठी गो आसिया।।
विद्या कुळ विख्यात, राज काज हर रहसरी।
बांका तो बिन बात, किण आगळ मन री करां।।