
बांकीदास आशिया
मध्यकाल रा सिरै डिंगल कवि अर राष्ट्रीय चेतना परक गीत लिखण वाळा पैला कवि। वीर, शृंगार, नीति, भक्ति आद सगळी धारावां में समान रूप सूं सृजन करियो।
मध्यकाल रा सिरै डिंगल कवि अर राष्ट्रीय चेतना परक गीत लिखण वाळा पैला कवि। वीर, शृंगार, नीति, भक्ति आद सगळी धारावां में समान रूप सूं सृजन करियो।
अत सीतळ उतराद सूं
बांको खिण नह वीसरै
भीतर धर दढ़भाव
चाव घणौ कर चेत
छटा अलौकिक छाय
देखै भव दरियाव
धवळा तो जळधार
दूध वरणना पाणियां
गंगा जिण थानक गई
हंस, मीन, कूरम हूवौ
जग मांझळ थारो जितै
ज्यां हंदा क्रत जोय
ज्यां थारै तट जाय
मंदायण तो माग
नदी साह हंसा संग नित
नार मिलै तो नीर में
नारायण पग नीर
पाप जिता तूं पलक में
पतित नहाय छो पीत पत
प्राणी तुझवौ पुखत
श्रीपत चरण सरोज रौ
वहता रहै विमांण