अन्नाराम ‘सुदामा'
भासा-सिल्प सारु न्यारी ठौड़ राखणिया सिरैनांव कवि-कहाणीकार-उपन्यासकार। 'मेवे रा रूंख' पोथी माथे केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार।
भासा-सिल्प सारु न्यारी ठौड़ राखणिया सिरैनांव कवि-कहाणीकार-उपन्यासकार। 'मेवे रा रूंख' पोथी माथे केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार।
जन्म: 23 May 1923 | बीकानेर,भारत
अन्नाराम सुदामा रौ जलम 23 मई 1923 में हुयौ। जद वांरौ जलम व्हियौ उण टेम रूणिया बड़ा बास में जमानौ जोरदार हुयौ, काळ से कुळिज्योड़ा अन्न री किल्लत भुगत रिया घरवाळां वांरौ नाम अन्नाराम राख्यौ। वां एम.ए तांई री भणाई करी। काम-काज सूं वै शिक्षक ई रिया। वांरी रचना-जातरा में गद्य अर पद्य दोनूं वां रै सागै हरमेस चालता रिया। वैवस्थित रूप सूं साठ रै दसक में वांरी मूळ पिछाण एक कहाणीकार-उपन्यासकार रै रूप में साम्ही आयी।
अन्नाराम सुदामा री कहाणियां अर उपन्यास ग्रामीण पृष्टभौम रै परिवेस नै खासतौर सूं परगट करै। राजस्थानी गद्य री जातरा में वांरौ योगदान ठावौ रियौ है। वांरौ चावौ अर सम्मानित उपन्यास ‘मेवे रा रूंख’ तत्कालीन राज अर समाज री पड़ता उघाड़ै। अन्नाराम सुदामा री रचनावां में आधुनिक बोध साफ़ निगै आवै।
अन्नाराम सुदामा री दरजण भर राजस्थानी पोथियां प्रकासित है;जिणमें ‘मैकती कायाः मुळकती धरती’, ‘आंधी अर आस्था’, मैवै रा रूंख’, ‘डंकीजता मानवी’, ‘घर-संसार’, ‘अचूक इलाज’ (उपन्यास), ‘आंधै नै आंख्यां’, ‘गळत इलाज’ (कहाणी संग्रै), ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’, ‘व्यथा-कथा अर दूजी कवितावां’ (कविता संग्रै), ‘दूर-दिसावर’, ‘आंगण सूं अर्नाकुलम’ (जातरा-संस्मरण), ‘बंधती अंवळाई (नाटक) सामिल है।
राजस्थानी ज्यूँ वै हिंदी में ई लगोलग सिरजण करता रिया। ‘जगिया की वापसी’, ‘आंगन-नदियां’, ‘अजहुं दूरी अधूरी’, ‘अलाव’ ‘बाघ और बिल्लियां’ आद वांरी हिंदी री प्रकासित पोथियां हैं। वांरी केई रचनावां कॉलेज-विश्वविद्यालय रै पाठ्यक्रम में पढ़ाइजे। वांरै ठावै साहित्यिक योगदान सारू वांनै अलेखूं सम्मान मिळ्या, जिणमें केंद्रीय साहित्य अकदमी रौ सर्वोच्च सम्मान, सूर्यमल्ल मीसण शिखर सम्मान, टैसीटोरी गद्य पुरस्कार आद सामिल है।
2 जनवरी, 2014 नै निब्बै बी बरस री औस्था में अन्नाराम सुदामा दुनिया छोड़ ग्या।