आलम जी
विश्नोई पंथ रै संस्थापक गुरु जांभोजी रा हुजूरी सिस्य अर गायन विद्या मांय अति निपुण संतकवि।
विश्नोई पंथ रै संस्थापक गुरु जांभोजी रा हुजूरी सिस्य अर गायन विद्या मांय अति निपुण संतकवि।
मूल नाम: आलमदास
आलमजी रै पिताजी रौ नांव रायमलजी अर माताजी रौ अंतरादेवी हो। विश्नोई पंथ रै जांभाणी भगतां री भक्तमाळ अर हिंडोलणै जैड़ी इदगी रचनांवां में आपरौ जिक्र हुयौ है, जिण सूं लखावे कै कवि री भगति भावना अर कविता री पंथ में गहरी पैठ ही। आलमजी रौ जलम अग्रवाल बणिज गोत में विक्रम री 16 सदी में हुयौ। गुरु जांभोजी रा हुजूरी अर परम सिस्य। गुरु जांभोजी रै थरपियोड़े विश्नोई पंथ में दीक्षित होयां पछै आप जोधपुर रियासत रै बंधड़े गांव में लंबे टैम ताईं रहिया।
गुरु जांभोजी री महिमा रौ बखाण करण वाळा संत कवियां में आलमजी आगली पांत में खड़ा लाधै। गुरु जांभोजी री महिमा, रंग, रूप, गुण रै सागै ही आपरै पदां में गोपियां रौ भगवान कृष्ण रै सागै प्रेम, बिछड़ण रौ बिरह, मिलण री आतुरता, हरि नाम री महिमा, सत्संग, विष्णु रै कई सारा अवतारां रौ बखाण, आत्मा रै उत्थान अर संसार में लीला रौ बखाण देखण नै मिळै। आप खासकर धनाश्री, मारू, रामगिरी, सिन्धु, नट, गवड़ी, खंभावची, मलार, सुबह अर मालकोस आद राग -रागिनियां में पद सिरजण करता अर गावता।
शास्त्रीय राग- रागणियां रा लूंठा जाणकार अर गावण-बजावण में सबस्यूं निराला संतकवि आलम जी एक बार गुरु जांभोजी सूं इजाजत ले'र देशाटन माथै निकळिया अर घूमता-फिरता जैसळमैर जा पहुंच्या। बठै राज दरबार में संगीत सभा जुड़्योड़ी। आलमजी भी राजा सूं अनुमति ले'र गायन प्रतियोगिता रा प्रतिभागी बणिया। राजा साहब कलावतां नें आदेस फरमायौ कै जको आदमी जीतैला वो हारण वाळा रौ गुरु मान्यौ जावैला। राजाजी सामै बैठ'र आलमजी आपरी इदगी सूं इदगी राग-रागणियां निकाळी, जिण सूं द्रविभूत होय'र एक मोटी शीला पिघळण लागी। आलमजी उण शीला में आपरा मंजीरा गाढ़ दिया अर राजा जी सूं अरज करी कै स्वामी जिका कलाकार इण मंजीरा नें बाहर निकाळ देसी उणां नै म्है गुरु मान लेस्यूं। आलमजी री इण विधा सूं राजा जी अर कलांवत घणां अचरज में पड़ गिया। इणं प्रसंग मुजब एक कहावत भी प्रसिद्ध है कि -
आलम एक शक्तिवान थारे, पत्थर को पाणी कर डारे।
आलमजी रौ देहावसान जोधपुर जिले री ओसियां तहसील रै भीकमकौर गांव में हुयौ। जिण ठौड़ आलमजी री पांचभौतिक देह समाधिस्थ करिजी, उण हिज जगै आज मनोहारी मंदिर नुमा छतरी बणियौड़ी है। वां री याद में हर साल मिगसर सुदी नवम रै दिन मेळौ भरिज्यो जावै। कवि राजूराम विश्नोई पंथ रै चौबीस भंडारा री साखी में इण जगै रौ बखाण इंण भांत कियौ है -
बीकमकोर धर्म की गादी, जहां आलम लिवि समाधि।
कस्वे थे जाट अनादि, कटे रोग मिटे सब व्याधि॥