मूढ़ मन क्यूं घुड़दौड़ मचावै, खाली गोता खावै॥

मूढ़ मन क्यूं घुड़दौड़ मचावै, खाली गोता खावै॥

रात दिवस के रेस कोस में, बाजी लाव बनावै।

जाकी पार कोई हुय जावे, बेनिंग पोष्ट बतावै॥

हिया फूट होवै नित हळकौ, खूब धाप नहिं खावै।

भक्ष्याभक्ष्य बिचार भावत, चाह रोज चटटावै॥

लोकलाज कुळ रीत लोप के, मस्तक मूंछ मुंडावै।

लागी लगन नींद नहिं लेवै, घोरे प्रात घुंमावै॥

पुरुष बडां सूं होय प्रीती, जोग पास नहिं जावै।

छकै मोद छोरां में छैलो, संगत नींच सुहावै॥

लोभी लपक गोळ कप लेवण, चक्कर अश्व चलावै।

वाटर जम्प उलंघ बावरो, के इक टट्टी कुदावै॥

रोके तुरंग बेग को राखै, अपनी घात उपावै।

जीतन की जांनें बहु जुगती, जन्म हारतौ जावै॥

जीत पोष्ट के पास जावतां, चाबक चोट चलावै।

लाख जतन करदे ललकारां, जीत और लेजावै॥

थेटम-थेट तुरंगम थाकै, पेंड चलण नहिं पावै।

हार जुवा नित हय खरीद नै, गाफल दाम गमावै॥

देखे डाव पीठ दुसमण की, धीमी चाल धपावै।

पूरै वेग करै जब पट्टी, लख ममरेज लगावै॥

घट में दौड़े घोड़ा घोड़ी, और दाय नहिं आवै।

न्याय धर्म नीती निज न्यारी, कांम् सुद्ध छिटकावै॥

मूढ़ मन क्यूं घुड़दौड़ मचावै, खाली गोता खावै॥

स्रोत
  • पोथी : ऊमरदान-ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ऊमरदान लालस ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार ,
  • संस्करण : तृतीय
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