सुख संपत मन जाय सरीरा, हरिजन हरि नहिं छाडै।
संगट पड़ै ज्यूं होय सधीरा, नैजा नाम सूं गाडै॥
भावै डार देवौ गिर सैती, भावै सिलत बुहावो।
भावै बोर देवौ सिंध मांही, हस्ती सीस झुकावो॥
भावै बांण करौ उर बेधन, भावै असुर संघारौ।
भावै अही डसावौ तन कू भावै खंग लै मारौ॥
भावै सिर पर धरौ सिलाड़ी, कानां धात भरावौ।
भावै पाय देवौ विष प्याला, भावै अगन जरावौ॥
भावै नांख भाखसी माहीं, गल में तोख डरावौ।
भावै पगां पेरावो बेड़ी, कर में कड़ी जड़ावौ॥
भावै चाढ देवौ तन सूली, भावै खोड़ै मारौ।
भावै बांध करौ तन करड़ा, ऊपर डंड प्रहारौ॥
भावै छोड़ देवौ सिंघ ऊपर, गाडो अवन मंझारी।
भावै अन खावण मत देवौ, नीर न देवो लिगारी॥
और अनेक कसौटी देवै, भांत भांत कर मारै।
हरिजन टेक नैक नहिं छाडै, तन मन हरि पर वारै॥