हरि कैहर गये परसूं, कब आवेगी बैरन परसूं॥
मन चाहत है उड जाय मिलूं पर, उड्यो न जाय बिना पर सूं।
घन घोर घटा बिजळी चमके, मेह कहे बरसूं बरसूं।
दादुर मोर पपीहा बोलै, कोयल बोल मधुर सुर सूं।
ऐसी न करूं, कुण लाज डरूं, आंगन बीच खड़ी तरसूं।
कहत ‘समान’ सुणो ब्रजनंदन, हरि दरसन बिन मैं तरसूं।