ऐसे पलकन छांड्यौ, जाय राच्यौ राम सूं।
प्यासौ प्यास पुकार के, प्रीतम लीन्ही जोय।
ऐसे राम उचारियौ, उर अंतर में पोय।
गाय सुवाड़ी सुरति में, बच्छा सूं अति हेत।
ऐसे राम पुकारियौ, निस दिन अधिकौ चैत।
पपैयौ पीव पुकार कै, स्वाति बूंद सूं ज्यास।
हरिजन कै हरि हेत यूं, एक सबद परकास।
दुर्बल देवादास के, लगी राम की आस।
विरहणि कूं बतलाय लीज्यौ, चरणां मांहि निवास॥