बिन सतसंग मति बेढंग।

फिरत डांवाडोल मन, ज्यौं बिन लगाम तुरंग।

कबहुं गिरि गिरि उठत अति श्रम, चढ़त क्रोधि उतंग।

कबहुं मूरख भ्रमत आतुर, उपज अंग अनंग।

कहा तप व्रत दान संजम, कहा न्हायैं गंग।

‘दास नागर’ बिना साधन, सकल साधन भंग॥

स्रोत
  • पोथी : नागरीदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : नागरीदास ,
  • संपादक : डॉ. किशोरीलाल गुप्त ,
  • प्रकाशक : नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी ,
  • संस्करण : प्रथम
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