शील बिना नरकै परै, शील बिना यम दंड।

शील बिना भरमत फिरै, सात दीप नौ खण्ड।

शील बिना भटकत फिरै, चौरासी के मांहि।

पहले होवै प्रेत ही, यामे संशय नाहिं॥

जकौ आदमी शील धर्म रौ पालण नीं करै उण ने मृत्यु रे पछै नरक री प्राप्ति होयसी अर यमराज री मार खावणी पड़सी। सात दीप अर नव खंडां

मांय भ्रमित घूम -सी। सागै ही चौरासी री जूणियां मांय आवतौ- जावतौ रहसी। इणां रै सागै ही प्रेत री जूणी में भी भुगतणौ पड़ैला।

स्रोत
  • पोथी : संत चरणदास ,
  • सिरजक : संत चरणदास ,
  • संपादक : त्रिलोकी नारायण दीक्षित ,
  • प्रकाशक : हिंदुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद ,
  • संस्करण : प्रथम
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