संतो! राम रजा में रहिये,
मन दे प्रांगा सीस दे सदगति, रांम रांम यूं कहिये।
ग्रिह परिवार मोह तजि मैं तैं, मन की गति मन जांणौ।
तजि अभिमान भजौ अविनासी, अंतरि अलप पिछाणौ।
सब संसार कहै कछु नाहीं, सांई कै मनि भावै।
पूरखा ब्रह्मा परम सुखदाता, अपणौ मारगि लावै।
हरि तैं विम्रुत लोग सब मानें, सदगति सुणायां न कोई।
नीदैं लोग राम वित चित में , ता समि और न कोई।
जन हरिदास रांम कै सरणौ, रहै राम ही गावै।
भौ सागर तिरै निरंजन परसै, निज विसरांम समावै।