सुख सागर के मांहि हंस किरला करै।

छिलर जग जंजाल जगत जलि जलि मुरै।

सुख सागर के मांहि संतों का वास है।

छिलर में जमजाल काल की फांस है॥

स्रोत
  • पोथी : संत कवि मोहनदास की वाणी और विचारों का अध्ययन ,
  • सिरजक : डाॅली प्रजापत ,
  • प्रकाशक : हिंदी विभाग, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
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