राहण शाहपुरा में भुरकी, पुन खेड़ापे जागी।
भरम करम सबका कर दूरा, राम रटण धुन लागी॥
राम नाम की भुरकी मेरे, सब सन्ता ले धारी।
कह सुखराम भक्त या केवल, आवागमन निवारी॥
भुरकी लहे जके जन जीता, बिन भुरकी जम मारे।
कह सुखराम भक्त या केवल, जमलोक जन तारे॥