पलक माहिं मर जाणा प्राणी।

पलक माहिं मरजाणा, कहा रंक कहा राणा॥

बहुत भांति करि पचि पचि मरिहै, ग्रिह बंधन के काजा।

मरती बरियां जाय अकेलौ, कहा रकं कहा राजा॥

हिंसा कपट सूं माया उपजै, कहै भागवत माहीं।

ग्रीह द्रव्य कोइ संगि चालै, करम भार ले जाहीं॥

वर ब्रह्मा को ले नहिं ठार्‌यो, सिव का वर दिसि जोई।

काळ सबन कूं बीणि खावै, देह धारी वा कोई॥

गहि बिसवास राम सुमरिये, अन तन को हरि दाता।

चेतन सतगुरु सरणौ भारी, राखै दोजिग जाता॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी चेतनदास ,
  • सिरजक : चेतनदास ,
  • संपादक : बृजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : संत उत्तमराम कोमलराम ‘चेतनावत’, रामद्वारा, इंद्रगढ़ (कोटा) ,
  • संस्करण : प्रथम
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