खड़ी टोपी में बैठी टोपी में नै।

सेली में है नहीं झींगी में है भाई।

कैसौ में है जड़ाव में है भला।

घोटम घोट करो नही पाई।

कथा में है बभूत में है भला।

बसत्र काले पिले बिरथाई।

मोहन साहिब सांच का यार है।

सांच बिना सब स्वांग लजाई॥

स्रोत
  • पोथी : संत कवि मोहनदास की वाणी और विचारों का अध्ययन ,
  • सिरजक : डाॅली प्रजापत ,
  • प्रकाशक : हिंदी विभाग, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
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