निराकार नहिं ना आकार, नहिं अडोल नहिं डोलन हारा।

पांच तत्व तिरगुण ते आगै, अद्भुत अचरज ध्यान लागै।

नहिं परगट नहिं गूपून ठाऊं, समझ सकौ नहिं थकि थकि जाऊं।

जो कुछ कहिया नाहीं नाहीं, सो सब देखा बांके मांही॥

ना तो बिना आकार रा है और ना ही आकार में व्याप्त है। ना ही फिरण वाला कर ना ही एक जिगां स्थिर है। पांच तत्व अर त्रिगुण सूं आगे अद्भुत अचंभौ है। फळ-फूल मंदिर गुफा आश्रम कठै ही ढूंढ सकां। जगत रे मांय जकी चीज नहीं है वा सगळी उणां रे मांही व्याप्त है।

स्रोत
  • पोथी : संत चरणदास ,
  • सिरजक : संत चरणदास ,
  • संपादक : त्रिलोकी नारायण दीक्षित ,
  • प्रकाशक : हिंदुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद ,
  • संस्करण : प्रथम
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