निज आनंद म्हें ओळख्यौ है जी, ऊग्यौ सहजै सूर॥
वचन बुद्धि सूं ओ पार है जी, इसड़ो अद्भुत नूर।
कलम क्रिया पहुंचे नई जी, लिखूं तो होय कूड़॥
जप तप उणनै लागे नई जी, मुगति रहत मंजूर।
करम क्रिया सारा थाक गया जी, हुय गया चकनाचूर॥
बाहर खोजतां घर में मिल गया जी, बाज्या म्हारे अनहद नूर।
साच कहूं म्हे सांसा मिटग्या है जी, ऊगी म्हारै ग्यान अंकूर॥
वारी हो वारी बालीनाथजी, म्हे तो परस्या जरूर।
रामदेव परचो पायौ है जी, सब में समाया पूरमपूर॥