मोहन बासी उस देस का जहां निरंजन बास।
होय रह्या चानण गैव का बिन सूरज प्रकास।
मोहन बासी उस देस का जहां भूम नहीं आप।
तेज व्योम नहीं बाय है त्रगुण ना ही ताप॥