मना मान रे कह्यो।

जान व्है अजान में सुजान क्यूं रह्यो॥

साह व्है असाह चाह दाह तें सह्यो।

राह छोड अहा तूं कुराह क्यूं गयो॥

मना मान रे कह्यो।

जान व्है अजान में सुजान क्यूं रह्यो॥

राज काज रीत नीत बूझतो रह्यो।

वाट आंधरे कि यार सूझतो बह्यो॥

चैन को कुचैन में गमावनों चह्यो।

सैन साथ नैन को गमावनों रह्यो॥

मना मान रे कह्यो।

जान व्है अजान में सुजान क्यूं रह्यो॥

राम नाम साजना में लाजनो रह्यो।

गाजना गिंवार गोल माजनो गयो॥

मना मान रे कह्यो।

जान व्है अजान में सुजान क्यूं रह्यो॥

कोर को सुधार ज्ञानी गोर तें कियो।

आपनों उधार पानीं घोर तें पियो॥

मना मान रे कह्यो।

जान व्है अजान में सुजान क्यूं रह्यो॥

कौ सवाल कीन जो जवाब दे दियो।

राम को जवाब देन जाव ना रियो॥

मना मान रे कह्यो।

जान व्है अजान में सुजान क्यूं रह्यो॥

और की निहार ऐब आज लूं जियो।

आपनें किये कि ओर फोर तूं हियो॥

मना मान रे कह्यो।

जान व्है अजान में सुजान क्यूं रह्यो॥

आपनों भायो ऊमर काम तें कियो।

देव को सुहायो जहां पांव नां दियो॥

मना मान रे कह्यो।

जान व्है अजान में सुजान क्यूं रह्यो॥

स्रोत
  • पोथी : ऊमरदान-ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ऊमरदान लालस ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार ,
  • संस्करण : तृतीय
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