कूड़ै भरोसे कुटंब कै, काची-काची निकच कुमाय।
जब जम की पासी पड़ै, काहु ता सरै न काय।
जर जुंवरौ पहरा दियै, मुरखौ रय करि बसाय।
कुवै उसारै कुंभ ज्यौं, तल्य बंध्यौ आवै जाय।
इणि कुमलाणै पोहप सिरि, बेठो जोखे मांह।
सत सुकरत पर प्राण करि, केवल बास बसाय।
मधकर अबज सुंवारेतूं, सुकरत पांखड़ियां।
सोई दरंसण म्हारै स्याम को, देखूं आंखड़ियां।
अब ज चलौ रे न रहौ, काटि चलौ जम फंद।
अपणे प्यारै पीव सूं, रलि मिलि करां आणंद।
अचि इम्रत हरि नांव रस, मन मधकर होय सुरंग।
उड़ी अलमां मधकर भुंवर, मिलि गुर जंभ अचंभ॥