कोई पिवै राम रस प्यासा रे,

गगन मंडल मैं अंमृत सरवै उनमनि कै घर बासा रे॥टेक

सीस उतारि धरै धरती पर करै तन की आसा रे।

ऐसा महिंगा अमी बिकावै छह रिति बारह मासा रे॥

मोल करै सो छकै दूर तैं तोलत छूटै बासा रे।

जो पीवै सो जुग जुग जीवै कबहूं होइ बिनासा रे॥

या रस काजि भये नृप जोगी छाडे भोग बिलासा रे।

सेज सिंघासन बैठे रहते भस्म लगाइ उदासा रे॥

गोरखनाथ भरथरी रसिया सोई कबीर अभ्यासा रे।

गुरु दादू परसाद कछूइक पायौ सुन्दरदासा रे॥

स्रोत
  • पोथी : सुंदर ग्रंथावली ,
  • सिरजक : सुंदरदास जी ,
  • संपादक : रमेशचन्द्र मिश्र ,
  • प्रकाशक : किताबघर, दरियागंज नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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