करणां सुणि स्याम मेरी,
मैं तो होइ रही चेरी तेरी॥
दरसण कारण भई बावरी, विरह पिया तन घेरी।
तेरे कारण जोगण हूँगी, दूँगी नग्र विच फेरी॥
कुंज सब हेरि हेरी।
अंग भभूत गले म्रिग छाला, यो तन भसम करूंरी।
अजहूं न मिल्या राम अविनाशी, बन बन विच फिरुं री॥
रोऊं नित टेरी टेरी।
जन मीरा कूँ गिरधर मिलिया, दुख मेटण सुख दे री।
रूम रूम सांता भई उर में, मिटि गई फेरा फेरी॥
रहूं चरणनि तरि चेरी॥