जागौ रे! अब नींद कीजै, थोड़ी राति सोवो रे।

कोड़ि कोड़ि लैंणी का हीरा, कौड़ी सटे खोवो रे।

चेतनि रहौ रखै मति चूकौ, काम कोध भ्रम जारौ।

तारणहार पखैं क्यूं तिरिसौ, मोटो जनम हारौ।

प्राणी कांई काल आपौ, दिन दिन नेड़ो आवै।

ज्यूं बालक नां हाथां‌ बाटी, हाडौ आइ छिनावै।

जन हरिदास कालकर ऊपरि, मेल्हि तिलां ज्यूं जोवै।

हरि मैं विम्रुख दाड़ तलि दरड़ै, मूल मधि मनवो पोवै॥

स्रोत
  • पोथी : श्री महाराज हरिदासजी की बाणी सटिप्पणी ,
  • सिरजक : हरिदास ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा, दादू महाविद्यालय, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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