पहर गले में गुदड़ी विरकत होय रै।
अंतर मांहि मलिन सुध ना कोय रै।
मेले पांव उठाय तौ बुग ज्युं ध्यान जी।
हरि हां मोहन गटकै मछली कैसा ध्यान भी ।
भेख बणावै बोहोत बढावे कैस रै।
छापा तिलक लगाय भी पलटै भेष रै।
मन ज्यूं का त्यूं है वो पलटा नांहि भी॥