भेख बणायो गरज कछु भी नांहि रै।

जै मन होवै सुध नाहिं वी माहिं रै।

कर खावो रुजगार जगत में कोय भी।

हरि हां मोहन कछु ना सिध परापत होय भी।

जोग कीय बिना नाही होवै जोग रै।

कान फड़ाय तो बादि हंसावै लोग रै।

केस लुचायो नहीं जती तो होय भी।

हरि हां मोहन सधै जत जति हो सती भी॥

स्रोत
  • पोथी : संत कवि मोहनदास की वाणी और विचारों का अध्ययन ,
  • सिरजक : डाॅली प्रजापत ,
  • प्रकाशक : हिंदी विभाग, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
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