हरि की कथा सुणि रे क्रमहीणा, कौंण औसर जाइ।

भरम मारग छाड़ि भूंदू, रसन रमिं रघुराइ॥

आप बिधना उचिति दीन्हीं, निरखि नग नर देह।

सु प्रभू बासुर रैणि बाणी, सुफळ करि किनि लेह॥

चेति मुगध बिचारि चित मैं, अपस अपरिम चाल।

सकल स्त्रोमणि सौंज सौंपी, निपट कियौ निहाल॥

सब लोक पालक पुहमि पुरवण, सुरति स्यंध निधान।

भजिसि निधि बड़ भागि पायौ, अंध तजि अभिमान॥

नैण नासा समझि सासा, श्रवण सिर कर पावि।

देखि कहै हरदास दुसरैं, इसौ दुल्यभ दाव॥

स्रोत
  • पोथी : हरदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : संत हरदास ,
  • संपादक : बृजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : धारिका पब्लिकेशन्स, दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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