पहला परम गुरु परचिया, बन बीच रैवाणी।

विगत कर बतळाविया, साधे सारंग पाणी।

टेळे सूं हाजर हुया, सायळ अंतर आणी।

तीन लोक रा राजवी, म्है हर री सोज नीं जाणी॥

स्रोत
  • पोथी : बाबै की वांणी ,
  • सिरजक : हरजी भाटी ,
  • संपादक : सोनाराम बिश्नोई ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार , जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : तृतीय
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