मूरिख का तो हिरदा भाटा होय रै।
कौट बरस लौ राखो जल में कोय रै।
जब ठोको तब आग तो चकमक माहिं भी।
हरि हां सीतल होय कभी तो नाहिं भी।
ऐसे मूढ तो जीवन कूं सतगुरु क्या करै।
कही सुणी जाय बादि नाहिं हिरदै धरै।
जो बहैरे के आगै कोई गाय रै।
हरि हां मोहन वासूं काहा दादि बोय पाय है॥