बाळ सनेही बाळमूं, बाळपणां को मीत।

नांव लिये ही जीवियै, तन मन होय प्रवीत।

हरि लियो अवतार, आयो घरे पुंवार के।

साहब सिरजंणहार, जिन उपाई मेदनी॥

स्रोत
  • पोथी : जांभोजी विष्णोई संप्रदाय और साहित्य ,
  • सिरजक : आलम जी ,
  • संपादक : हीरालाल माहेश्वरी ,
  • प्रकाशक : सत साहित्य प्रकाशन, कलकत्ता ,
  • संस्करण : द्वितीय
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