एक पिंजरा ऐसा आया।
रूह रूई पींजण कै कारण, आपन राम पठाया॥टेक
पींजण प्रेम मूठिया मन कौं लै की तांति लगाईं।
धुनि ही ध्यांन बंध्यौ अति ऊंचौ कबहूं छूटि न जाई॥
कर्म काटि काढै नीकैं करि गज ज्ञान कै सकेलै।
पहल जमाइ सुपेदी भरि करि प्रभु कै आगै मेल्है॥
जोइ जोइ निकट पिनावन आवै रुई सबनि की पींजै।
परमारथ कौं देह धर्यौ है मसकति कछू न लीजै॥
बहुत रुई पीनी बहु बिधि करि मुदित भये हरि राई।
दादुदास अजब पींनारा सुंदर बलि बलि जाई॥