संतौ यहु दुख कासूं कहिए॥

दुनिया बहुत दास कोइ बिरला, ताथैं निसदिन डरतां रहिए॥

पंडित मति परला कूं चाली, तिल तिल त्रिष्णा बाढी।

बाचा कुबलि बीज कड़ काया, जिभ्या कंठ थैं काढी॥

तीरथ बरत बुराई तिस्टी, पसु बंधन पथि पडिया।

भ्रम भागौत कौ भै सुणि सुणि, साम्हां सांकलि जड़िया॥

इंद्री अरथि किया गमि अक्खिर, पड़त काल भै पासी।

सुणकर स्वान बधिक भए बाचण, खेदि खलक कूं खासी॥

बेद पुराण सुम्रित गुण पढि पढि, सहजि सुरा भरि पीया।

कह हरदास फिरौ सिर फोड़त, कुलखण कीए लीया॥

स्रोत
  • पोथी : हरदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : संत हरदास ,
  • संपादक : ब्रजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : धारिका पब्लिकेशन्स, दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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