राम का करूं हो करमगति आपणी, क्यूं सुधा स्याम स्यूं कूड़ कीयौ।
भरम दिढ बाडि भल भेद लाभै नहीं, भूल गया भीतरी स्वाद दीयौ॥
बहु रतन खानि पणि पारिखू को नहीं, पदम बिण पारिखू सर्व कुलि काच।
नैन बिण अंध सोलह कला का करै, बहर सठ श्रवण बिन त्यूंति सौ साच॥
सुफल फल फूलां बासा बडी केतुकी, केवड़ौ केलि कूं जौ कली जाइ।
बिबधि बन बाग मैं अजा जे ऊछरै, अपस मनि आरवा आक करि खाइ॥
बैद जो कोथली बाट जातौ गमैं, पड़ी को पाधरौ पुरिख पावै।
भेद बिण भूछ ले भुवंग मणि का करै, कोड़ि की वोखदी कामि नावै॥
सति सबद साखि नित साध भाखै सदा, जुगति गुण जौहरी मरम जाणैं।
हरि कथा हेत हरदास भूलै नहीं, अगम गुर गम हुवो अरथ आणैं॥