धन धरती में धरै ऊपरी दै धूल भी।
कृपण कै पुनि दान की बात न मूल भी।
ज्यूं आया त्यौ जाय चलै ना लार रै।
हरि हां मोहन ऐसा धन पाया धरकार दै॥
ज्यूं कीड़ी कण संचि संचि मरजातु है।
जाकी भेली करी भी तीतर खातु है।
यो किरपण का धन प्रलय मे जाय रै।
हरि हां मोहन आपणै हाथ ना खरचै खाय रै॥