धन धन रामचरण महाराज।

कर्म कुबुधि सब दूर काटण, सुबुधि गुण द्यौ ताज।

नित्य निरमल सुक्ख परमल अध्यातम जु समाज॥

भर्म खण्डन ग्यान मंडन ध्यान धर महाराज।

संत सांचा मनो बाचा झूठ पाछा आज।

गुणां गहरा धर्म सेहरा वैराग अविचल साज।

धंन स्वामी अंत्रजामी, अकामी पद पाज।

सरण आये सुक्ख पाये सुणी अनुभव गाज।

आप रूड़ा जगत कूड़ा कहा जाणैं काज।

कहै दासी चरण प्यासी सरूपां की लाज॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी श्री रूपदासजी 'अवधूत' की अनुभव - वाणी ,
  • सिरजक : सरूपां बाई ,
  • संपादक : ब्रजेन्द कुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : संत उत्तमाराम कोमलराम 'रामस्नेही' ,
  • संस्करण : प्रथम
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