दां औगण दुखदाई नैं रे, दां औगण दुखदाई नैं।
तो में औगण तार नहीं है, औगण भाग अन्याई नैं॥
दीयै सूं निज कंवर देखियो, हियै लियो हुलराई नै।
मा बाजण नै बळियौ-मूंडो, औ अळियौ सुत जाई नैं॥
झपटी नहीं आंख झबकाई, लेगी नह लपकाई नैं।
लख लांणत मिनकी नै लागी, उण वेळा नह आई नैं॥
जिण कुळ रो खोटो दिन व्है जद, निध जनमें निरताई नैं।
बाळापणो जवानी बोई, बोवण चहत बुढाई नैं॥
गैलो गांम, गांम गैले, नैं गिणै नहीं गरवाई नैं।
पढियां बिनां मूढ पग फावे, पढियां बिचै पुमाई नैं॥
उणरै ढिग कोई रहै आदमी, तौ क्योंहिक कसर कुमाई नैं॥
अपणैं माहिं अकल नह अैसी, खुद ही लखै खराई नैं।
मांनै नहीं कह्यौ ब्रम्हा रौ, बद नह तजै बुराई नैं॥
गांगो गिणांक बूझ बुझाकड़, ऊंधी अकल उपाई नैं।
सेखसली नैं कुण समझावै, बस इण पोपांबाई नैं॥
गंडक गिणै न गधेड़ौ, गधौ गिणैं न गाई नैं।
चिड़ी कमेड़ी मारण चाहै, औ अपणै ढिग आई नैं॥