मना मान रे कह्यो।

दान को विधान छिमां ध्यान में छयो।

मति राम बिसरि जाहु नाम कान में कह्यो॥

जवानी के जारे धंधा धोर में रह्यो।

धर्म कौं धकेल गैल पाप की गयो॥

गैल को असूल सूल धूल में गह्यो।

मूल को गमाय मूल फूल क्यों रह्यो॥

भाम चाम भोग सोग राग को सह्यो।

राम तैं विजोग काहु भोग नां रह्यो॥

लीन अलीन झीन चीन्ह तैं लयो।

लीन व्है अलीन दोऊ दीन तैं गयो॥

रोल व्है डफोल डावाडोल में रह्यो।

मानखो अनोल गोल मोल में गह्यो॥

और को कुकाम गाम गाम में कह्यो।

आपने अकाम को जु नाम ना लयो॥

कीच सो गलीच काम भूलि तैं भयो।

नीच काम बीच अजौं नीच तू नयो॥

गैर कामही तैं गैव गूजनूं गयो।

अपनीं ही ऐब तैं अमूझनूं दयो॥

वाद विवाद को सवाद तैं सह्यो।

रावरो निनाद ऊंट पाद ज्यूं गयो॥

ग्यान कों चुरायो लवै लागतो गयो।

जागतो घुरायो जबैं भागतो भयो॥

दूसरे बुरे रहो रोध तैं दियो।

आपने बुरे पै अहो क्रोध ना कियो॥

दार तैं कुदार पैर पोच में दियो।

कार का बिगार सोच लारसै कियो॥

साच झूठ झूठ साच राचतो रह्यो।

रूप कूं कुनाव नाव नांवतो रह्यो॥

बोल कै कुबोल भगो टोल तू भयो।

माल तोल व्याज साल पोल में सह्यो॥

राज के विहीन सत्यसिंधु तैं रयो।

भाज के अधीन दीनबंधु के भयो॥

छंद है सुछंद अनंद को कयो।

मंदमती मरो बिफंद में फयो॥

स्रोत
  • पोथी : ऊमरदान-ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ऊमरदान लालस ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार ,
  • संस्करण : तृतीय
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