भायां ही भायां सुख भयौ। राम क्रिपा थैं रोस गयौ॥

मोहन नाथ बसीठी बाणी, ऐकै गांय बसाया।

काम कलेस किया दुख कांठै, पान कथा रस पाया॥

ज्यूं घरि भेद बिगूतौ रावण, वाह ले साखि सुणाई।

आपण माहिं अलूधा आंटै, बसुधा बादि गंवाई॥

पांडौं प्रीति भजै पौह लाधौ, केरूं कूडि जाहीं।

जो भौ तारण ता संगि भेला, एक दसा हरि धाहीं॥

बैर बरोध दोउ दिसि दाटी, सूधी बाट बटाई।

सोइ हरदास सनेही साचौ, जाकौ याह दिसि आई॥

स्रोत
  • पोथी : हरदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : संत हरदास ,
  • संपादक : ब्रजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : धारिका पब्लिकेशन्स, दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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