सांवरिया म्हे कांई ऐसा भोळा जी॥

हंसि हंसि प्रीति करत औरन सूं, म्हासूं बोलत मोळा जी।

बींनै तो थे अगड़ घड़ावो, म्हां सूं मीठा बोला जी।

हमां धरिगा सो लेय पधारो, वींका ही भरज्यो झोळा जी।

बार रहो भीतर जनि आवो, बरज दिया बर सोळा जी।

प्रेम की राड़ निजर में ही जाणै, नाहिं बहैं छै गोळा जी।

‘समनी’ के स्याम हंसे सुनि के, चन्द्रावलि के रोळा जी।

स्रोत
  • पोथी : साहित्य सुजस भाग-2 ,
  • सिरजक : समान बाई ,
  • संपादक : श्रीमती प्रकाश अमरावत ,
  • प्रकाशक : माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अजमेर।
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